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चातुर्मासिक धर्मसभा में दिए प्रवचन : गुरु ने की भक्तामर 31वें काव्य की व्याख्या

डबरा। आरोग्यमय वर्षायोग समिति द्वारा गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी मुनिराज का चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन करके बड़े ही भक्ति भाव से किया। इसके बाद मेडिटेशन गुरु उपाध्याय श्री 108 विहसंतसागर जी महाराज की सभी भक्तों ने अष्ट द्रव्य से पूजा अर्चना की। उसके पश्चात गुरुदेव ने भक्तामर स्तोत्र के 31वें काव्य की व्याख्या करते हुए कहा कि इस काव्य में मुनिवर ने कहा कि हे नाथ ! चंद्रकांति के समान तीन छत्र आपके ऊपर सूर्यताप रोकते हुए शोभित हो रहे हैं।

मोतियों के समूह में खचित्र छत्र तीनों लोक की ईश्वरता को प्रकट कर रहे हैं। दोपहर कालीन स्वाध्याय में बताया कि सच्चा योगी किस प्रकार का चिंतन करता है। आचार्य देव कहते हैं कि शमशान घाट चिंतन करने के लिए सबसे अच्छा स्थान है, क्योंकि वहां अनेकों मुर्दा आते हैं और जलते हैं और वो वैराग्य का उत्पादक कारण है। इससे यह पता चलता है कि जो जलाया गया, वो तो मैं था ही नहीं और जो में हूं, वो जला ही नहीं है। इसलिए पुदगल ने पुदगल को ही जलाया। शमशान घाट में व्यक्ति समझ जाता है कि कौन अपना है और कौन पराया है। पुस्तकों से पढ़ने से मोक्ष नहीं मिलता, जो उसका अनुसरण करता है वही मोक्ष की प्राप्ति करता है।

किए केश लोंच

आरोग्यमय वर्षायोग चातुर्मास डबरा में उपाध्याय श्री मेडिटेशन गुरु विहसंत सागर जी मुनिराज व विश्व साम्य सागर जी मुनिराज ने केश लोंच किये और उसके बारे में कहा कि जैन संत अपने बालों को चार माह में एक बार अपने हाथों से उखाड़कर अलग करते हैं। वे किसी प्रकार के यंत्र का सहारा न लेते हुए बालों को अपने हाथों से खींचते हैं। जिस दिन केश लोंच होता है, उस दिन का उपवास रखकर आत्म साधना करते हैं।

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