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तृतीय पट्टाचार्य आचार्य श्री का 55 वां पदारोहण दिवस: आचार्य श्री धर्मसागर जी के आचार्य पदारोहण दिवस पर विनयांजलि


प्रथमाचार्य श्री 108 शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा के तृतीय पट्टाचार्य धर्मशिरोमणी आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज का 55 वां आचार्य पदारोहण दिवस 23 फरवरी को मनाया जाएगा । जानिए आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व, जिसे संकलित किया है हमारे सहयोगी इंदौर निवासी राजेश पंचोलिया ने


आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज का जन्म, पौष शुक्ल पूर्णिमा संवत 1970, 12 जनवरी सन 1914 को हुआ था । श्री धर्मनाथ भगवान के केवलज्ञान कल्याणक के दिन, राजस्थान के गंभीरा नामक स्थान जन्मे आचार्य श्री के पिता बख्तावरमल जी और माता का नाम श्रीमती उमराव देवी जी है ।

15 वर्ष की अल्पायु में लिया पहला व्रत नियम

आचार्य श्री ने पहला व्रत नियम 15 वर्ष की अल्प आयु में लिया । जिसमें आचार्यकल्प श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज से शुद्ध जल ग्रहण करने का नियम लिया । इसी तरह, इंदौर से दो प्रतिमा व्रत का नियम आचार्य कल्प श्री 108 वीरसागर जी महाराज से लिया । संयम पद पथ पर नित आगे बढ़ते रहे आचार्य श्री ने सप्तम प्रतिमा व्रत आचार्य कल्प श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज से बडनगर में लिया । आपने क्षुल्लक दीक्षा चैत्र कृष्णा,7 संवत 2000, को आचार्य श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज से बालूज, महाराष्ट्र में हुई । जिसमें उन्हें क्षुल्लक श्री 105 भद्र सागर जी महाराज के रूप में जाना गया । आचार्य श्री की ऐलक दीक्षा वैशाख माह संवत 2007 में, आचार्य श्री 108 वीरसागर जी महाराज फुलेरा, राजस्थान में ग्रहण की ।

आचार्य श्री की त्याग,तप और संयम की पावन यात्रा

आचार्य श्री की मुनि दीक्षा कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी संवत 2008 को हुई । जिसमें आचार्य श्री 108 वीरसागर जी महाराज द्वारा फुलेरा राजस्थान में आपको मुनि श्री 108 धर्म सागर जी महाराज का नाम मिला ।

जब आचार्य श्री तृतीय पट्टाधीश पद पर हुए सुशोभित

24 फरवरी 1969 को तृतीय पट्टाधीश पद पर आचार्य श्री108 धर्म सागर जी महाराज स्थान श्री महावीर जी, राजस्थान में सुशोभित किया गया । जिस दिन इन्हें आचार्य पद व तृतीय पट्टाधीश पद पर सुशोभित किया गया उसी दिन नूतन आचार्य श्री के कर कमलों से 11 दीक्षाएँ प्रदान की गई ।

आचार्य श्री से दीक्षित संत आज समाज को दे रहे दिशा

आचार्य श्री धर्म सागर जी से दीक्षित संतों ने राष्ट्र और समाज के नवनिर्माण में अपना योगदान दिया है । जिनमें मुनिश्री105 महेंद्रसागर जी महाराज, मुनि श्री108 श्री अभिनंदनसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 संभवसागर जी महाराज, मुनिश्री 108 श्री शीतलसागर जी महाराज, मुनिश्री 108 यतीन्द्र सागर जी महाराज, मुनिश्री 108 वर्द्धमान सागर जी महाराज एवं आर्यिका 105 श्री गुणमति माताजी,आर्यिका 105श्री विद्यामति माताजी, साथ ही क्षुल्लक 105 श्री गुणसागर जी महाराज, क्षुल्लक 105श्री बुद्धि सागर जी महाराज की क्षुल्लिका 105 श्री अभयमति माताजी जैसे संतों को दीक्षा प्रदान की ।

आचार्य श्री के कर-कमलों से 76 दीक्षाएं हुई

आचार्य श्री के कर कमलों से 76 दीक्षाएं हुई । जिनमें वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री 108वर्धमान सागर जी महाराज को श्री महावीर जी में सन 1969 में दीक्षा प्रदान की गई थी । आचार्य श्री 108 विपुल सागर जी को सन 1976 में मुजफ्फरनगर में दीक्षा प्रदान की गई थी । पूज्य मुनि श्री 108अमित सागर जी महाराज जिन्हें सन 1984 में अजमेर में दीक्षा प्रदान की गई थी । इसके साथ ही आर्यिका 105 श्री शुभमति माताजी जिनको सन 1972 अजमेर में आर्यिका दीक्षा प्रदान की गई थी। वर्तमान में माताजी वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर महाराज के संघ में हैं।, आर्यिका 105 श्री श्रुतमति माताजी जिन्हे सन 1974 दिल्ली में दीक्षा प्रदान की गई थी । आर्यिका 105 श्री शिवमति माताजी जिन्हें,1974 दिल्ली में ही दीक्षा प्रदान की गई थी । आर्यिका 105 श्री सुरत्नमति माताजी जो वर्तमान में सम्मेद शिखर तीर्थ पर विराजमान है। इनको सन 1967 मुजफ्फरनगर में दीक्षा प्रदान की गई थी । वर्तमान में यह 7 साधु विद्यमान हैं । 32 मुनि दीक्षा, 21 आर्यिका दीक्षा, एक ऐलक दीक्षा और 17 क्षुल्लक व 05 क्षुल्लिका दीक्षा दी गई । जिसमें प्रथम दीक्षा श्री दया मति जी को खुरई में सन 1964 में दीक्षा दी गई । माताजी, आचार्य श्री शांति सागर जी की गृहस्थ जीवन में बहन थी ।

आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज जीवन चरित के प्रमुख संस्मरण

  • अभिनंदन ग्रन्थ नही किया वरन फटकार लगाई
  • कंकड़ से माला फेरते थे
  • संवत 2018 शाहगढ़ mp चातुर्मास में मधु मक्खी के हमले का पूर्वाभास
  • सागर के निकट विश्राम स्थल पर सर्प पूरी रात्रि पटिये के नीचे रहा
  • संवत 2016 वीर गांव अजमेर में श्रावक का दर्द आशीर्वाद से ठीक किया
  • धर्म के बिना ज्ञान की कोई की कोई कीमत नही
  • बिना ज्ञान के धर्म भी टिक नहीं सकता है
  • साधु के चार गुण – इन्द्रिय आहार कषाय और निंद्रा विजय
  • आचार्य पद से साधु ही ठीक थे दिनभर नमोस्तु करने वालों को आशीर्वाद देने में समय हो जाता है ।

सन 1975 सहारनपुर चातुर्मास में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेने वाले को पिच्छी लेने देने का सौभाग्य मिला । इसी तरह संवत 2075 में बिजोलिया के रास्ते में नदी किनारे संसंघ विश्रान के दौरान दहाड़ते सिंह, नदी में पानी पीकर चुपचाप चले गए । आचार्य श्री ने चश्मे का भी परिग्रह नहीं किया और वे सभी सिंहासन पर नहीं बैठे हैं ।

43 वर्ष का साधु जीवन, 43 चातुर्मास करने वाले आचार्य श्री

आपने क्षुल्लक अवस्था मुनि एवम् आचार्य रहते हुए अनेक सिद्ध एवम् अतिशय क्षेत्रों सहित अनेक नगरों में चातुर्मास किए हैं । जिनमें, प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के तृतीय पट्टाधीश होने के कारण वर्ष 1974 में भगवान महावीर स्वामी का 2500 वा निर्वाण महोत्सव का अखिल भारतीय कार्यक्रम आपके प्रमुख निर्देशन एवम् सानिध्य में मनाया गया ।

आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज की समाधि

महामना भव्य पुण्यात्मा आचार्य श्री के जन्म की तरह समाधि भी तीर्थंकर प्रभु के कल्याणक दिवस पर हुआ । आचार्य श्री की समाधि, वैशाख कृष्णा 9 नवमी विक्रम संवत 2044 सन 1987स्थान सीकर, राजस्थान में हुई । श्री मुनि सुब्रत नाथ भगवान का केवलज्ञान कल्याणक एक ऐसे महामना भव्य पुण्यात्मा जिनका जन्म तथा समाधि भी तीर्थंकर प्रभु के कल्याणक दिवस पर हुआ है ।

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