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महोत्सव : भगवान मुनिसुव्रतनाथ को चढ़ाया निर्वाण मोदक 


आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ, गणिनी आर्यिका सरस्वती माताजी ससंघ, गणिनी आर्यिका यशस्विनी मति माताजी ससंघ के सानिध्य में श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन पंचायत के तत्वाधान में रूपनगढ़ रोड स्थित श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शुक्रवार को 20वें तीर्थंकर1008 श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव मनाया गया। पढ़िए विस्तृत से श्याम पाठक की रिपोर्ट…


मदनगंज-किशनगढ़। वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ, गणिनी आर्यिका सरस्वती माताजी ससंघ, गणिनी आर्यिका यशस्विनी मति माताजी ससंघ के सानिध्य में श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन पंचायत के तत्वाधान में रूपनगढ़ रोड स्थित श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शुक्रवार को 20वें तीर्थंकर1008 श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव हर्षोल्लास के साथ विनयपूर्वक मनाया गया। सर्वप्रथम मूलनायक श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान का पंचामृत अभिषेक, शांतिधारा एवं संगीतमय पूजन किया गया। इसके बाद बैंड की मधुर स्वर लहरियों पर मुनि हितेंद्र सागर जी महाराज जी द्वारा निर्वाण पाठ पढ़ते हुए श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान एवं आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज की जयकारों के साथ निर्वाण मोदक चढ़ाया गयाl आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ने भगवान के गुणों का गुणगान करते हुए सभी को मंगल आशीर्वाद दिया।

हुई महाआरती

इससे पूर्व श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन पंचायत के पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्यों द्वारा अल्प प्रवास के दौरान विराजित वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ से मंदिर जी में सानिध्य प्रदान करने के लिए निवेदन किया। सांयकालीन 20दीपकों के 20 थाल द्वारा श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान महाआरती अखिल भारतीय दिगंबर जैन महिला महासभा द्वारा की गईl इस अवसर पर श्री मुनिसुव्रतनाथ पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी, विजय कासलीवाल, चेतन प्रकाश पांड्या, सुभाष बड़जात्या, दिलीप कासलीवाल, गौरव पाटनी, सुभाष वेद, सुरेश बगड़ा, जय कुमार वैद, संजय पांड्या, पवन दोसी, अनिल कासलीवाल, विजय गंगवाल, राजेश पांड्या, सुरेश काला, अनिल पाटनी, सुमेर गोधा, पदम गंगवाल, अनिल गंगवाल, विमल पाटनी, मांगीलाल झांझरी, राजकुमार वेद ,विकास छाबड़ा, मुकेश पापड़ीवाल, मुकेश पांड्या, महेंद्र बाकलीवाल सहित सकल दिगंबर जैन समाज के लोग उपस्थित थेl

भक्तामर की आराधना से होती है कर्मों की निर्जरा 

प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी की भक्ति करते हुए कारागृह में बंदी रहे मानतुंग आचार्य ने भक्तामर स्त्रोत की रचना की थी । इस स्त्रोत के सुमिरन से, स्मरण से, चिंतन से अनन्त गुना कर्मों की निर्जरा होती है। हजारों वर्ष पहले का रचित यह स्त्रोत्र आज वर्तमान में भी कार्यकारी और कर्मों का नाश करने में समर्थ है। इस पूरे स्त्रोत में 48 काव्य हैं। प्रत्येक काव्य में 56 बीजाक्षर होते हैं। इन बीजाक्षरों का सुमिरन करने से रोग, शोक और विपत्ति का क्षय होता है। ये उद्गार वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने आर.के. कम्युनिटी में भक्तामर विधान पूजन के दौरान व्यक्त किये।

विधान पूजा हुई

दोपहर में पंडित कुमुद जी सोनी अजमेर के निर्देशन में श्रीजी के अभिषेक और शांतिधारा के बाद श्री भक्तामर महामंडल विधान की पूजन की गई। पूजन के बीजाक्षरों का वाचन आचार्य श्री एवम् संघस्थ साधुओं के द्वारा किया गया।इसके बाद आचार्य श्री के मंगल प्रवचन हुए। शाम को महामंगल आरती की गई।

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