ज्ञान की बात,आप के साथ

लौकिक शिक्षा के साथ धर्म की शिक्षा ऐसी हो, जो सही निर्णय लेने में मदद कर सके


हमारे गुरुजनों से यही विनती है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को धर्म और कर्म की शिक्षा के साथ उनमें तालमेल कैसे बैठे यह शिक्षा जरूर दें। बच्चों का आत्मविश्वास इतनी ऊंचाई तक पहुंचे की वह किसी भी मुश्किल घड़ी में घबराए नहीं, बल्कि उसका समाधान निकालें। ज्ञान की बात, आपके साथ में आज हिमानी योगेश जैन के विचार ।


बांसवाड़ा।आज विश्वभर में होने वाली अनसुनी अनचाही घटनाओं को देखकर या सुनकर रूह कांप जाती है। मरना और मारना एक खेल सा हो गया है। सोचते हैं बड़े होने पर हमारे बच्चे कैसे सुरक्षित रहेंगे। कुछ परिवार जन धर्म की क्रिया भी सिखाते हैं पर उनकी यह शिक्षा कब तक उनकी सुरक्षा कर पाएगी, ये गहन चिंता का विषय है। अब तो हमारे गुरुजनों से यही विनती है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को धर्म और कर्म की शिक्षा के साथ उनमें तालमेल कैसे बैठे यह शिक्षा जरूर दें। हमारे लिए हमारा परिवार बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि परिवार के सभी सदस्य अपने को धार्मिक बनाएं, तब ही हम अपने राष्ट्र धर्म और समाज की रक्षा कर सकते हैं। बच्चों का आत्मविश्वास इतनी ऊंचाई तक पहुंचे की वह किसी भी मुश्किल घड़ी में घबराए नहीं, बल्कि उसका समाधान निकालें। इस चकाचौंध भरी दुनिया में फिसलना आसान सा हो गया है।

पथ से भ्रष्ट होना आसान हो गया है। इस परिस्थिति में वो संभलें, रूकें, ठहरें, सोचें ऐसी शिक्षा जरूरी है और आजकल उनका आत्मविश्वास इतना कमजोर होता जा रहा है कि जरा-सी विफलता उन्हें अंदर से झगझोर देती है और कहीं ऐसी घटनाएं सुनी हैं कि गलत कदम उठा लेते हैं, तो उन्हें संकट की घड़ी में उन्हें क्या सीखना है? कैसे संभालना है? कैसे सामना करना है? वह हमारे गुरु ही सीखा सकते हैं। लौकिक शिक्षा के साथ साथ धर्म की शिक्षा ऐसी हो, जो उन्हें सही निर्णय लेने में मदद कर सके और उनका धर्म पर विश्वास हमेशा बना रहें, जिससे वो स्वावलंबी हो ताकि माता-पिता का डर समाप्त हो जाएगा और बच्चा चाहे कितना भी दूर हो अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा देकर उनके जीवन में धर्म का होना इतना सार्थक होगा कि वह अपने परिवार और समाज से जुड़ा रहेगा। इससे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सकेगा। इसके लिए हम और आप गुरुजनों को मिलकर एक सामाजिक धार्मिक शिक्षा का प्रबंधन करना होगा। बस यही दुआ रहे सभी सुखी रहें, किसी को दुख न सताए।
।।सर्वे भवन्तु सुखिन:।।

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