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क्या आप जानते हैं - 5: देव-दर्शन से दूर हो जाते हैं जीवन के सारे संकट


जिनेन्द्र भगवान का दर्शन जन्म-जन्म के पाप का नाश करता है। उनके दर्शनमात्र से संसार के सुख से लेकर मोक्ष तक मिलता है। जन्म-जन्म के पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। उनके दर्शन से कषाय मंद और नाश हो जाता है, मन पवित्र और निर्मल हो जाता है।


जिनको देखने से मन पवित्र हो, बुराई निकल जाए। गलत, मिथ्या धारणा दूर हो, संसार के दुखों से निकलने का जिन्होंने उपदेश दिया है, जिनके दर्शन और उपदेश से मनुष्य स्वयं भगवान बन जाए, जो राग – द्वेष सहित 18 दोषी से रहित है, जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, वह अरिहंत भगवान कहलाते हैं। इन्हें देव, तीर्थंकर, भगवान,परमात्मा, ईश्वर, प्रभु, जिनेन्द्र देव आदि नामों से जाना जाता है।

देखो, उदाहरण से समझते हैं। आपको बहुत क्रोध आ रहा है और आप उस समय मंदिर जाएं तो क्या होगा? उस समय तो मन शान्त होगा ही। जब आप भगवान के सामने खड़े होते हैं तो अपने बुरे काम का पछतावा तो होता है, वह बात अलग है कि वह बाहर दिखाई दे या नहीं। संसार में चोर हो या साहूकार, दोनों अपना काम करने से पहले भगवान की प्रतिमा, फोटो के सामने नमस्कार करते हैं। इससे तो स्पष्ट है कि संसार में देव (भगवान) का कितना महत्व है।

तो चलो जानते हैं देव- दर्शन के बारे में…

वर्तमान में साक्षात भगवान के दर्शन नहीं होते। उनकी प्रतिमा विराजमान कर उनकी आराधना करते हैं। उनकी प्रतिमा के स्मरण, दर्शन ,श्रद्धा से संकट दूर होते हैं, बुरे कर्मों का नाश होता है, मिथ्या मान्यता क्षण भर में दूर हो जाती है।

प्रभु स्मरण की महिमा की सोमा सुंदरी की एक कहानी है। उसकी सास ने द्वेष में एक घड़े में सर्प रख दिया और कहा इसके अंदर हार है तो ले लो। उसने प्रभु का स्मरण करते हुए हाथ डाला तो वह सर्प माला बना गया।

ध्यान रखने योग्य बातें

– सबसे पहले यह ध्यान रखना कि जब आप जिनेन्द्र भगवान की भक्ति कर रहे हों तो यह भाव रखना कि मेरे बुरे कर्मों का नाश हो और मैं आप जैसा बन जाऊं।

– संसार के सभी जीव धर्मात्मा बनें।

– धन – वैभव, पद आदि की प्राप्ति के भावों का त्याग करना चाहिए।

– सांसारिक वस्तु की प्राप्ति के भावों का त्याग करना चाहिए।

– दूसरों के प्रति दुर्भावना का त्याग करना चाहिए। 

– सागर धमामृत में कहा है कि मंदिर जी में हंसी को, शृंगार आदि की चेष्टा को, मन – मस्तिष्क को दूषित करने वाली कथाओं को, कलह, निंदा, आहार – भोजन का त्याग कर देना चाहिए अर्थात यह सब मंदिर में नहीं करना चाहिए ।

दर्शन का फल

पद्मपुराण पर्व 32 में दर्शन करने का फल कुछ इस तरह बताया गया है…

– जो प्रतिमा के दर्शन का चिंतवन करते हैं, उन्हें एक उपवास का फल मिलता है।

– दर्शन की तैयारी करने पर उसे 2 उपवास का फल मिलता है ।

– मंदिर (चैत्यालय) जाने का आरम्भ करने पर तीन उपवास का फल मिलता है।

– गमन करने पर चार उपवास का फल मिलता है।

– कुछ आगे जाने पर 15 दिन के उपवास का फल मिलता है।

– चैत्यालय के दर्शन करने से एक माह के उपवास का फल मिलता है।

– भाव भक्ति से महास्तुति करने पर अनंत उपवास का फल मिलता है।

और भी अन्य शास्त्रों में कहा गया है…

– दर्शन- नमस्कार तो दूर रहा, जो जिनेन्द्र देव का भावपूर्वक स्मरण भी करता है, उसके करोड़ों भावों के द्वारा संचित पाप कर्म शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।

– जो मनुष्य तीर्थंकर भगवान को हृदय में धारण करता है, उसके सब ग्रह, स्वप्न और शकुन की सूचना देने वाला पक्षी सदा शुभ ही रहते हैं।

– दर्शन करने वाला मनुष्य राजा हो, साधारण इंसान हो, धनवान हो या फिर चाहे दरिद्र हो, धर्म से सहित होता है तो वह संसार में पूज्य होता है।

ऐसा भी हुआ

– इंद्रभूति गौतम गणधर जैसे ही भगवान महावीर के समवशरण में पहुंचा, वहां मानस्तंभ में भगवान की प्रतिमा का दर्शन किया। उनका मान, अहंकार, कषाय सब नष्ट हो गया।

– राज श्रेणिक हाथी के पैर के नीचे आकर मरा। जिस समय वह मरा, वह तीर्थंकर दर्शन के भाव से जा रहा था तो उस दर्शन के प्रभाव से वह मेंढक देव बन गया।

(अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज की डायरी से)

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