सारांश
पारसनाथ में महापारणा के बाद आचार्य प्रसन्न सागर जी के सानिध्य में 5 महिलाओं समेत 8 भक्तों ने आजीवन जैन मुनि बनने की दीक्षा ली। इससे पूर्व दीक्षार्थियों के उबटन, मेहंदी आदि कार्यक्रम हुए। केशलोचन के बाद सभी को नया नाम दिया गया। पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट…
सम्मेदशिखर जी। आचार्य प्रसन्न सागर जी के सानिध्य में 5 महिलाओं समेत 8 भक्तों ने आजीवन जैन मुनि बनने का संकल्प लिया। मधुवन में बुधवार को जैनेश्वरी दीक्षा समारोह में दीक्षा लेने वाले सुशील कुमार जैन स्कूल में प्रसन्न सागर जी के गुरु थे। लेकिन, अब उन्होंने अपने शिष्य को ही गुरु माना और दीक्षा ली। समारोह में आचार्य प्रसन्न सागर जी ने मंत्रोच्चार के साथ दीक्षा प्रदान की। उनके शिष्य मुनि पीयूष सागर जी को उपाध्याय पद से सुशोभित किया गया। परिमल सागर जी मुनि बने। इस मौके पर बांसवाड़ा के विनोद कुमार दोषी, जागृति दोषी, कन्नौज की विमला जैन, मैनपुरी के सुशील कुमार जैन, कोटा के ओमप्रकाश, कर्नाटक की सावित्री दीदी, महाराष्ट्र की नंदा जैन और कानपुर को बबीता बंसल ने दीक्षा ली। इससे पूर्व उनका उबटन, मेहंदी, गणधवलय विधान, आहारचर्या, आहार अभ्यास, दोपहर में देव वंदना, गुरु वंदना, शाम को गुरु भक्ति व गोदभराई संस्कार कराया गया। केशलोचन के बाद इन सभी के संन्यासी जीवन के नामों की घोषणा की गई।
दीक्षा स्वयं की परीक्षा
इस अवसर पर आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि महावीर ने दीक्षा को तप, कठिन और दुर्लभ कहा है। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के दो तत्व बहुत कठिन हैं। एक नग्न रहना और दूसरा केशलोचन करना। यदि ये तत्व दिगम्बरत्व से अलग कर दिए जाएं, तो सांसारिक कई व्यक्ति साधु बन सकते हैं। इन्हें आत्मसात कर गुरु आज्ञा व जैन धर्म का पालन करने वाला ऊर्जावान व्यक्तिव जैनेश्वरी दीक्षा प्राप्त करता है। ब्रह्मचारी अवस्था से क्षुल्लक दीक्षा तक नियमों में कुछ छूट होती है। जिन्हें उच्च पद मिलते ही समाप्त कर दिया जाता है।
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