सारांश
आचार्य विशुद्ध सागर जी गुरुदेव संसघ की अद्वितीय आगवानी जैन और अजैन समाज ने भव्यता से की। संघ का शाम को मंगल विहार केसली के लिए हुआ। आचार्य श्री ने धर्म प्रभावना के दौरान प्रवचन भी दिए। पढ़िए डॉ. जैनेंद्र जैन की रिपोर्ट…
तेंदुडाबर/सहजपुर। जैन आचार्य विशुद्ध सागर जी गुरुदेव संसघ की अद्वितीय आगवानी जैन और अजैन समाज ने भव्यता से की। सुबह तेंदुडाबर में आहार चर्या हुई और दोपहर में सहजपुर में संघ की आगवानी हुई। इस मौके पर राम भजन मंडली, बजरंग अखाड़ा जैन युवा मंडल एवं समस्त जैन एवं अजैन समाज के लोग मौजूद रहे। संघ का शाम को मंगल विहार केसली के लिए हुआ।
आचार्य श्री का हुआ प्रवचन
विहार से पहले धर्म प्रभावना के दौरान आचार्य श्री ने कहा अखंडता में जिओगे तो विकास होगा और खंडता में जिओगे तो विघटन होगा। विपत्ति से बचना है तो कुमति से बचना चाहिए। जहां सुमति है, वहां संपत्ति है और जहां कुमति है, वहां तो नियम से नाश ही होगा। उन्होंने कहा कि विघटन अपेक्षा ही कराता है और उत्कर्ष करना है तो उपेक्षा करना सीखो। सारे मंगलों में सबसे श्रेष्ठ मंगल हैं दिगंबर मुनि। जगत में विश्वास की मुद्रा कोई है तो उसका नाम दिगंबर मुद्रा है। अस्त्रों, शस्त्रों से युद्ध लड़े जा सकते हैं लेकिन वासना को तो ज्ञान और चारित्र और संयम से ही जीता जा सकता है। साधु नहीं बन पाओ तो कम से कम साधु के भक्त बने रहना।
तुम्हें बड़ा बनाया, किसने छोटे ने ही बड़ा बनाया है इसलिए सारी संपत्ति ले लेना लेकिन भाई को भाई कहना बंद मत कर देना क्योंकि आप संतान को जन्म तो दे सकते हो लेकिन भाई को जन्म नहीं दे सकते हो। उन्होंने यह भी कहा कि प्रेम की आवाज अमृत से ज्यादा मीठी होती है। बड़ों का सम्मान और छोटों को स्नेह जहां हैं, वहीं परिवार की अखंडता है। जहां ये दोनों नहीं है, वहां परिवार का नाश नियम से होगा, अपमान आयु का नाश करा देता है। उन्होंने महिलाओं से कहा कि अपना सिंदूर लंबे समय तक बचाकर रखना है तो अपनी मांग और अपेक्षाएं कम कर दो।
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