सारांश
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में देखें तो धार्मिक कथाओं से लेकर भारतीय निर्माणों में आपको कहीं न कहीं भगवान आदिनाथ का वास मिल ही जाएगा । आदिनाथ मंदिरों पर श्रीफल जैन न्यूज़ की विशेष सीरीज में आज बात विश्व प्रसिद्ध चित्तौड़ के किले में कीर्ति स्तंभ की, जिसमें आदिनाथ भगवान का वास है । जानिए विस्तार से हमारे सहयोगी रमेश टेलर की इस रिपोर्ट में….
मेवाड़ के वीरों की धरती और वीरों की वीरता की कहानी कहता है चित्तौड़ का दुर्ग..। सातवीं सदी में सात सौ एकड़ में फैला चित्तौड़ का प्रसिद्ध किला वीरता से भरी कहानियों के लिए जाना जाता है । विश्व प्रसिद्ध भारत के प्रमुख किलों में से एक यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित सातवीं सदी के मेवाड़ राज के इस किले में, 99 फीट ऊँचा, सात मंजिलों वाला एक स्तम्भ बना है । इसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सानांय के पुत्र जीजा ने करवाया था । यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट तथा ऊपरी हिस्से पर 15 फुट चौड़ा है तथा ऊपर की ओर जाने के लिए तंग नाल बनी हुई हैं ।
30 अप्रेल 896 में बना कीर्ति स्तम्भ, भगवान आदिनाथ को समर्पित है । कीर्ति स्तंभ और यहां बना जैन मंदिर, 11वीं से 15वीं सदी के दिलवाडा व रणकपुर जैसे उत्कृष्ट नक्काशी वाले अतिसुंदर व भव्य जैन मंदिरों का तरह इसका भी निर्माण हुआ है । यहां बना जैन मंदिर, महाराणा कुम्भा के खजांची कोला के पुत्र वेलाका द्वारा वर्ष 1448 में स्थापित श्रींगर चौरी नाम से प्रसिद्ध जैन मंदिर भगवान शांतिनाथ को समर्पित है!
प्रसिद्ध इतिहासकार कन्निंगम ने वर्ष 1883-84 में किले का अवलोकन किया था और अपनी रिपोर्ट में प्राचीन जैन मंदिरों व कीर्ति स्तम्भ का वर्णन किया है । राजस्थान गजेटर व अन्नाल में भी जैन मंदिरों व कीर्ति स्तम्भ का वर्णन है । जैन कीर्ति स्तम्भ की शैली से मिलता जुलता विजय स्तम्भ का निर्माण किया गया ।
चित्तौड़ के किले में हैं पार्श्वनाथ का भी मंदिर
किले में महासती स्थल के पास ही गौमुख कुण्ड है । लोग इसे पवित्र तीर्थ के रूप में मानते हैं। कुण्ड के निकट ही उत्तरी किनारे पर महाराणा रायमल के समय का बना “पार्श्वनाथ भगवान का एक प्राचीन जैन मंदिर” है। जैन मंदिर में दक्षिण से लाई गयी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर कन्नड़ लिपि का लेख है ।
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