संत परिचय समाचार

प्रसन्न सागर जी के सिंह निष्क्रिड़ित व्रत महासाधना का महापारणा: भगवान महावीर के बाद 557 दिन की तपस्या करने वाले महामुनिराज,लाखों लोग जाएंगे सम्मेद शिखरजी


सारांश

भगवान महावीर के बाद ये पहला मौक़ा होगा जब जैन महामुनिराज ने 557 दिन का सिंह निष्क्रिड़ित व्रत पूरा किया हो।इतने दिन की कठोरता तपस्या का महापारणा महाप्रतिष्ठा महोत्सव का शुभ दिन समीप आ रहा है ।सम्मेद शिखरजी में महामुनिराज प्रसन्नसागर जी ने 21 जुलाई 2021 से 23 जनवरी 2023 तक सिंह निष्क्रिड़ित व्रत धारण किया हुआ है। 557 दिनमौन, 496 दिन उपवास और 61 पारणा की अद्भुत तपस्या और साधना और इस तपस्या के साधक के बारे में जानिए विस्तार से….


जैन धर्म की परम साधना, ऐसी साधना जिसे भगवान महावीर के जीवन चरित में ही सुना था । जिस समय सम्मेद शिखर जी को लेकर देश भर में जैन समाज आंदोलित था, उस समय भी पवित्र सम्मेद शिखरजी पर एक परम संत अपनी मौन और उपवास साधना के ज़रिए जैन संस्कृति और परंपराओं को नई दिशा दे रह थे । उनकी साधना संपूर्ण होने का पावन दिन क़रीब आ चुका है ।

लाखों जैन धर्मावलंबी पहुंच रहे सम्मेद शिखरजी

आचार्य प्रसन्न सागर जी की कठोरतम साधना के पूर्ण होने के अवसर पर सम्मेद शिखर जी पर लाखों जैन धर्मावलंबी जुट रहे हैं ।

देश भर से अलग-अलग समूहों में पहुंचने वाले जैन श्रावकों के लिए व्यवस्थाएं बनाने के लिए पहले से टीमें सम्मेद शिखरजी पहुंचना शुरु हो गई हैं। राजस्थान से जाने वाले यात्रियों का दल ट्रेन के माध्यम से शिखरजी पहुंच रहा है ।

रेल यात्रा के मुख्य संयोजक शैलेन्द्र शाह चीकू ने जानकारी देी कि महामहोत्सव में जयपुरवासियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कई व्यवस्थाएं की जा रही हैं। आवास,भोजन,सामूहिक पर्वत वंदना सहित अन्य व्यवस्थाएं देखने के लिए एक टीम पहले से सम्मेद शिखरजी पहुंच गई है।

557 दिन मौन, 496 दिन उपवास,61 पारणा

परम पूज्य आचार्य जी 23 जनवरी को अपने सिंह निष्क्रिड़ित व्रत के 557 दिन पूरे कर रहे हैं । क्या जैन बंधु, क्या अ-जैन समाज, आदिवासी बंधु समेत समाज का हर वर्ग जैन साधना के इस अद्भुत कार्य से हतप्रभ है । सिंह निष्क्रिड़ित व्रत की पालना और अपनी मौन वाणी से अंतर्मना संवाद, पीढ़ियों तक जैन समुदाय की राह को प्रकाशित करता रहेगा । प्रसन्न सागर जी की इस तपस्या का महापारणा महोत्सव देश भर के जैन समाज के लिए एक उत्सव का अवसर है ।ये अवसर जैन समाज के प्रति फैली भ्रांतियों को दूर करने का भी है और जैन संस्कृति के प्रति उत्सुकता पैदा करने का है ।जैन संतों के त्याग और तपस्या को देखकर आम लोगों में कौतूहल है कि जो समाज अपना सर्वस्व न्यौछावर कर समाज को नई दिशा देने का सामर्थ्य रखता है, जिस समाज के संत, आत्मकल्याण के मार्ग पर चलते हुए विश्व कल्याण के भाव रखते हैं । जो दुनिया को देने में ही विश्वास करते हैं, उनका सम्मान, देश का सम्मान है ।

अंतर्मना महोदधी आचार्य श्री प्रसन्नसागर जी महाराज के बारे में जानिए

मध्यप्रदेश के छत्तरपुर में 23 सितंबर 1970 को जन्मे प्रसन्न सागर जी का सांसारिक नाम दिलीप जैन रखा गया था। आपके सांसारिक पिता श्री अभय कुमार जैन और माता श्रीमती शोभा जैन हैं ।

21 जनवरी 1983 को आपने गृह त्याग किया और 12 अप्रेल,1983 को आपने ब्रम्ह्रचर्य व्रत लिया । महावीर जयंती के अवसर पर 18 अप्रेल 1969 में आपने राजस्थान के परतापुर में मुनि दीक्षा ली।

परम वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज आपके मुनि दीक्षा गुरु हैं। 21 मार्च 1986 को गृह त्याग किया और प्रथम केश लोच किया ओर उसी दिन अजीवन वाहन का त्याग किया और संत्तव की महान यात्रा में आगे बढ़े ।

आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी का साधना मार्ग

नोगामा जिला बासंवाडा राजस्थान में अंतर्मना के चातुर्मास की यात्रा हुई ।1989 में नागोमा जिला बांसवाडा राजस्थान में उन्होंने पंचमेरू व्रत के ५ उपवास और रत्नत्रय के ३ तेल किये। ४ उपवास फुटकर – यंहा उनके सात दिन तक लगातार आहार में अंतराय हुआ और गाला बंद हो गया था।

1990- प्रतापगढ़ (6-उपवास)

1991- प्रतापगढ़ (8 उपवास) (यहां मंत्र साधाना करते वक्त उनके आँखो की रोशनी चली गई 16 घन्टे के लिए)

1993- भिंड मःप्रः(12-उपवास)

1994- इटावा यू पी (6)

1995- कानपुर यूपी (8)

1996- मुरादाबाद UP (4-उपवास)

1997- मुजफ्फरनगर UP (7-उपवास)

1998- दाहोद गुजरात (स्वतंत्र चातुर्मास) (6- उपवास)

1999- पोर बडोदा गुजरात (6-उपवास)

2000- अहमदाबाद (5-उपवास)

2001- गिरीडीह झारखंड यहां पांच महीने के चातुर्मास मे 85 उपवास किया

2002- धुलियान जिला मुर्शिदाबाद बंगाल (8-उपवास)

2004- डिसपूर आसाम(6-उपवास)

2005- नलवाडी आसाम ( आश्चर्यश्री के साथ ) (12-उपवास)

2006- किशनगंज बिहार (6-उपवास)

2007- कोलकाता (9-उपवास)

2008- हैदराबाद (8-उपवास)

2009- जनवरी इच्छलकरन्जी मै *आचार्य सन्मति सागर महाराज जी से हर चतुर्दशी का उपवास लिया अष्टमी, चतुर्दशी का नमक त्याग किया।

2009- मैसूर 24 उपवास किये । (8-उपवास)

2010- औरंगाबाद रवि व्रत किया (8-उपवास)

2011- कानपुर (6-उपवास)

2012- अजमेर (12-उपवास) अजमेर के लिए जब विहार किए तब April मे 40 दिन की अखंड मौन साधाना पद्मपुरा मे किए |

2013- उदयपुर (उदयपुर से ही एक आहार -एक फल आहार का नियम लिया ।

2014 – पद्मपुरा (यहा से हरी पत्तियों का आजीवन त्याग किया) यहां प्रथम बार 80 दिन का सिंघनिष्क्रीडित व्रत किए अखंड मौन ओर एकांत के साथ जिसमे उपवास- 59 पारणा – 21 थे |

2015 – नागपुर यहां उन्होंने अष्टानीका के 8 उपवास ओर सोलहकारण के 16 उपवास टोटल 32 उपवास |

2016 – बैंगलोर यहां 95 दिन उपवास किए

2017- पद्मपुरा यहा 186 दिन की अखंड मौन साधाना सिंघनिष्क्रीडित व्रत किए जिसमे उपवास – 153 (निर्जला पारणा – 33 (यहा से एक उपवास और एक आहार का नियम जो आज चल रहा है)

2018- अहमदाबाद *यहां उन्होंने 64 (चौंसठ) रिद्धि व्रत किया,जिसमे 66 दिन का उपवास अखंड मौन साधाना ओर एकांत था |

2019 – पुष्पगीरी यहां णमोकार व्रत के 35 उपवास किए

2020 – मनसा-महावीर यहां उन्होंने भक्तामबर व्रत के 48 दिन का उपवास अखंड मौन ओर एकांत के साथ किया। जिसमें 48+2 कुल 50 दिन उपवास किया |

अंतर्मना के व्रतों की यात्रा

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