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क्या आप जानते हैं- 3 : क्या होती है अन्यायपूर्वक कमाए हुए धन की गति?

 

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इससे पहले हम चर्चा कर चुके हैं कि श्रावक को धन न्यायपूर्वक ही कमाना चाहिए। आज हम जानेंगे कि अगर धन अन्याय पूर्वक कमा लिया जाए तो उस धन की गति क्या होती है?

इसकी जानकारी हमें सागर धर्मामृत ग्रंथ से मिलती है, जिसका हिन्दी अनुवाद गणिनी आर्यिका सुपार्श्वमति माता जी ने किया है।

 

अन्यायोपार्जितं वित्तं दश वर्षाणि तिष्ठति।

प्राप्ते त्वेकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति ॥1॥

यांति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यंचोऽपि सहायतां

अपंथानं तु गच्छन्तं सोदरोऽपि विमुञ्चति ॥2॥

 

अर्थात

अन्यायपूर्वक कमाया हुआ धन अधिक से अधिक दस वर्ष तक रह सकता है और ग्यारहवें वर्ष में मूल सहित नष्ट हो जाता है। न्याय मार्ग पर चलने वाले पुरुषों की तिर्यंच भी सहायता करते हैं और अन्यायपूर्वक आचरण करने वालों का साथ सगा भाई भी छोड़ देता है।

-व्यक्ति का जिस कुल में जन्म हो, उस कुल के अनुसार व्यवसाय से धन उपार्जन न कर अन्य अन्य साधनों से धन उपार्जन करता है तो वह धन भी अन्यायपूर्वक कमाया हुआ ही माना जाएगा।

-अन्यायपूर्वक कमाए धन में दूसरों को बद्दुआ होती है। बद्दुआ के साथ आया धन गलत कार्यों, अन्याय के कार्यों, व्यसन आदि में ही खर्च होता है। अन्यायपूर्वक कमाए धन से अहंकार का जन्म होता है। ऐसे व्यक्ति को धन की कद्र नहीं होती है।

-हींग की डिब्बी में कितना भी स्वादिष्ट हलवा रख दो, उस हलवे में हींग की खुशबू ही आएगी। ठीक उसी प्रकार अन्याय से कमाया धन भी संस्कारों और बुद्धि, दोनों को भ्रष्ट करता है।

जैसे जो व्यक्ति एक बार सट्टे से पैसे कमाता है, वह बार-बार वही करता है। कहावत भी है -जैसा खाएं अन्न वैसा होए मन- इसलिए अपने मन को पवित्र रखने के लिए कभी पथ से भ्रष्ट होकर धन न कमाएं।

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