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मालगांव की 9 वर्षीय देवांशी संघवी सूरत में लेंगी दीक्षा: चार महीने की थी, तब से रात्रि भोजन त्यागा


सारांश

सिरोही में एक नौ वर्ष की बच्ची की दीक्षा लेने की तैयारियों को लेकर पूरे क्षेत्र में चर्चा हो रही है । जानिए विस्तार से पूरी ख़बर हमारे सहयोगी महावीर जैन की इस रिपोर्ट में …


 

व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नही हैं यदि उसकी इच्छाशक्ति व श्रद्धा मजबूत हैं तो वो सब कुछ कर सकता है जो वो चाहता हैं । यह कर दिखाया 9 वर्ष की मालगांव की बालिका देवांशी धनेश संघवी ने । जिस बालिका के अभी खेलने-कूदने, पढ़ने व संसार को जानने का वक्त हैं उस वक्त इस 9 वर्षीय बालिका ने साधना का मार्ग चुन लिया है ।

हीरा व्यावसायी संघवी मोहन भाई की सुपौत्री हैं देवांशी

संघवी भेरूतारक तीर्थ धाम के निर्माता-संस्थापक संघवी भेरमल हकमाजी परिवार के हीरा व्यवसायी संघवी मोहन भाई की सुपौत्री व संघवी धनेश-अमी बेन की लाडली सुपुत्री देवांशी ने 9 वर्ष की आयु में विश्व हितचिंतक, बालदिक्षीत, प्रवचन प्रभावक आर्चाय भंगवत श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीजी म.सा. की निश्रा में 18 जनवरी 2023 को ’’ देवांशी दीक्षा दानम ’’ बल्लर हाउस, हैप्पी ऐक्सीलेन्सी वेसु सूरत में प्रातः 7 बजे संयम जीवन ग्रहण करेगीं ।

साध्वी प्रशमिताश्री जी से वैराग्य की शिक्षा ग्रहण की

इस नन्ही बालिका ने पूज्य साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी से वैराग्य की शिक्षा ग्रहण की हैं । उसकी दीक्षा लेने की इच्छा को साध्वीजी श्री चारूदर्शना श्रीजी म. सा. ने मजबूत बनाया जिसके कारण वो संयम पंथ ग्रहण कर रही हैं ।

जन्म होते ही नवकार महामंत्र का श्रवण करवाया
बालिका का जन्म होने पर उसे नवकार महामंत्र का श्रवण कराया, ओगे का दर्शन कराया व पूज्य गुरू भगवंतो का नाम श्रवण करवाते हुऐ 14 नियम धारण व आलोचना की बाते बताई गई । जब बालिका 25 दिवस की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया । 4 महिने की थी तब से रात्रि भोजन का त्याग शुरू किया । 8 महिने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरूआत की ।

एक वर्ष की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया । एक वर्ष 3 महिने में 58 से अधिक दीक्षा स्वीकार दर्शन किए । दो वर्ष में उपवास तप, गुरूवंदन, व अष्टप्रकारी पूजन कठस्थ किया । 2 वर्ष 1 माह से गुरू भगवंतों के साथ रहना व धार्मिक शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया । 2 वर्ष 3 महिना में जग चिंतामणी सूत्र के साथ अनेक प्रकाश के दोहे कंठस्थ किये। देवांशी ने तीन वर्ष से अब तक सचित का उपयोग नही किया ।

3 वर्ष 1 माह की हुई तब पंचप्रतिक्रमण सूत्र कंठस्थ किया । 3 वर्ष 5 माह की हुई तब से भक्ताम्भर व जयविराय की 25 गाथा कंठस्थ की ।

चार वर्ष 3 माह की आयु में गुरुभगवंतों का मिला साथ

4 वर्ष 3 माह की हुई तब माह में 10 दिन पूज्य गुरूभगवंतो के साथ रहना शुरू किया ओर उस वक्त 37 दीक्षा, 13 बडी दीक्षा, 4 आर्चाय पदवी में 250 साधु-साध्वी भगवंतो का गुरूपूजन किया। 4 वर्ष 5 माह मे कर्मग्रन्थ व ह्रदय प्रदीप ग्रन्थ का वाचन शुरू किया । 5 वर्ष की हुई तब दीक्षा विधि सम्पूर्ण कंठस्थ की ।

सात वर्ष की आयु में शुरू किया पौषध व्रत

अपने माता पिता के धार्मिक संस्कारों के अनुरूप प्रतिभावान देवांशी ने 5 वर्ष 8 माह की आयु में आंयबिल तप व चैत्री पुनम की विधिपूर्वक आराधना शुरू की । 5 वर्ष 4 महिने की आयु में एक ही दिवस में 8 सामायिक, 2 प्रतिक्रमण व एकासणा शुरू किया। 7 वर्ष में पौषध व्रत शुरू किया ।

अब तक देवांशी ने कभी टीवी नहीं देखा

आठ वर्ष तक की आयु में 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थो की यात्रा व अनेक जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा । देवांशी के माता-पिता अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि इस अद्भुत बालिका ने कभी टी वी देखा नही, जैन धर्म में प्रतिबन्धित वस्तु का कभी उपयोग किया नहीं किया और कभी भी अक्षर लिखे हुऐ वस्त्रो को नही पहना ।

देवांशी न केवल धार्मिक शिक्षा मे बल्कि क्वीज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। संगीत मे सभी राग मे गाने, स्केटिंग भरतनाट्यम, योगा मे भी प्रवीण थी । देवांशी संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, मारवाड़ी व अंग्रेजी भाषा में भी निपूर्ण हैं। देवांशी के परदादा संघवी भेरमलजी भी बहुत ही धार्मिक आस्था के दयालु व दानवीर व्यक्ति थे, उनका भी जैन शासन में धर्मप्रभावना का एक अलग इतिहास था ।

इसके काकाश्री स्व. श्री ताराचंदजी का भी धर्म के क्षेत्र मे एक विशेष स्थान था और उन्होनें श्री सम्मेतशिखर जी का भव्य संघ निकाला। आबू की पहाडियों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया । संघवी परिवार ने जनकल्याण, जीवदया एवं तप आराधना के भी विशिष्ट आयोजन करवाये जो जैन शासन मे यादगार पूर्ण हैं।

परमात्मा और गुरु भवसागर पार कराएंगे – देवांशी

देवांशी जब पावापुरी तीर्थ मे परमात्मा के दर्शन करने आई तब अपने स्वागत समारोह मे कहा कि जीवन मे सफलता तभी मिलती है जब हमें उन पर श्रद्धा व विश्वास हों । हम वकील के पास इसलिए जाते हैं क्योंकि हमें उम्मीद है कि हमें वकील न्याय दिलायेगा । हमें डा. ठीक करेगा, हमें शिक्षक पढायेगा । उसी तरह मुझे पूरी श्रद्धा व विश्वास है कि मेरे परमात्मा व मेरे गुरू मुझे भवसागर पार करायेगें।

जैन परंपरा में दीक्षा का अपना अलग स्थान
जैन शासन मे दीक्षा का अपना महत्व व स्थान हैं । इस नन्ही सी बालिका ने संयम पथ ग्रहण करने का निर्णय लेकर हीरे के व्यवसायियों के लिए विख्यात गांव ’’ मालगांव ’’ को हीरे की तरह जैन परंपरा में चमकाने का अद्वितीय कार्य किया हैं । समस्त जैन समाज इस प्रतिभाशाली बालिका के दीक्षा के फैसले से गद्द-गद्द हैं।

संघवी भेरमल हकमाजी बाफना परिवार मालगांव-सूरत के प्रमुख मोहन भाई, ललित भाई व धनेश भाई ने जैन समाज से अपील की है कि वे इस बाल दीक्षार्थी को अपना आर्शीवाद प्रदान करने लिए दीक्षा के अवसर पर सूरत पधारें ।

14 जनवरी से शुरु होगा देवांशी का दीक्षा महोत्सव

दीक्षा महोत्सव 14 जनवरी को शुरू होगा। 17 जनवरी को वर्षीदान का वरघोडा होगा ओर 18 जनवरी को सुबह 6 बजे देवांशी दीक्षा मंडप में प्रवेश करेंगी ।

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