अशोक कुमार जेतावत– श्री सुभूषण मति माताजी, इन दिनों अहमदाबाद के शाहपुर स्थित श्री अजीतनाथ दिगम्बर जैन मंदिर शाहपुर में विराजमान हैं । माताजी ने यहां अपने प्रवचनों में कहा कि – ” फसल काटना है तो बीज भी बोना ही पड़ेगा । उसी प्रकार पुण्य की क्वालिटी मेंटेन करने के लिए भावनाओं की क्वालिटी भी मेंटेन होनी चाहिए ।
– “पुण्य दमदार हो , इसके लिए पुण्य की क्रियाएं- पूजा, आहार, दान, स्वाध्याय आदि में तल्लीनता भी दमदार होना चाहिए ।”
– “भावों को प्रशस्त बनाने के लिए बोली नहीं लगानी पड़ती, केवल इस मन को बाहर जाने से रोकना है । * पाषाण को परमात्मा बनाने के लिए बाहर से कुछ नहीं लगाते, सिर्फ पाषाण के अन्दर की मूरत को पहचान कर अतिरेक हटा देते हैं ।”
माताजी ने परमात्मा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि वो तो आप में ही निहित है । इसीलिए
– ध्यान- पूजा अहो भाव से करो ! ना कि अहम् (अहंकार) भाव से !
– कीजे शक्ति प्रमाण शक्ति शक्ति बिना सरदा धरैं
– शक्ति के अनुसार तो करना, परंतु शक्ति को छुपाना भी नहीं ?
– याद रखना पुरुषार्थ से नहीं भाग्य से पैसा मिलता है और भाग्य ( पुण्य ) बनाया जाता है भगवान के द्वार पर
– भोजन में प्रिय वस्तु मिल जाने पर जैसी तल्लीनता से उसका आनंद लेते हैं, वैसे ही तल्लीनता से भगवान की पूजन का आनंद लो
– ध्यान रखना हमारे भगवान कुछ करते नहीं , पर उनकी भक्ति बिना कुछ होता भी नहीं !
– कलीकाल में भक्ति ही मुक्ति मार्ग है
– प्रतिदिन जहाँ समवशरण सी दिव्य देशना श्रवण करने मिले, क्यों न भक्त खींचे चले आवें।
– इस देश में सन्तों की चरण रज से चमत्कार, स्वत घटित हो जाते हैं ।
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