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मुरैना ज्ञानतीर्थ पर शिक्षण प्रशिक्षण शिविर का आयोजन: सभी को ज्योतिष का ज्ञान हो- स्वस्तिभूषण माताजी

 

 

मनोज नायक – मुरैना में पूज्य आर्यिका संघ के सान्निध्य में शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर का आयोजन चल रहा है । शिविर को लेकर कुलपति ब्रह्मचारी श्री जयकुमार “निशांत” द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार परम पूज्य आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी के मंगल सानिध्य में अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद द्वारा यह आयोजित हो रहा है ।

 

शिविर के द्वितीय दिन मंगलाचरण डॉ. संजय शास्त्री टीकमगढ़ एवं दीप प्रज्वलन उपस्थित विद्वानों द्वारा किया गया । शिविर का संचालन पंडित कमल हाथी शाह द्वारा किया गया । शिविर के प्रातःकालीन सत्र में पंडित गजेंद्र जी फर्रुखाबाद के द्वारा ज्योतिष का प्रशिक्षण दिया गया ।

जिसमें ज्योतिषानुसार किसी भी आयोजन के लिए शुभ और अशुभ महूर्त के विषय में व्याख्यान प्रस्तुत किया गया । शास्त्री परिषद के पंडित राकेश जैन गंजबासौदा द्वारा स्वयंभू स्त्रोत का पद्य लेखन का विमोचन किया गया।

दोपहर कालीन सत्र में मंगलाचरण पंडित चंद्र कुमार चंद्रर ग्वालियर ने किया गया । पूज्य माताजी के आशीर्वाद से न्याय सत्र का शिक्षण कार्य मयंक शास्त्री टीकमगढ़ द्वारा, आचार्य माणिक्य नंदी के परीक्षा मुख्य ग्रंथ के माध्यम से आरंभ किया गया ।

जिसमें ग्रंथ का मंगलाचरण एवं प्रमाण का स्वरूप के विवेचन में 7 सूत्रों का विश्लेषण किया गया । जिसके माध्यम से जैन न्याय की अन्य न्याय से तुलनात्मक समीक्षा की गई ।

 

ज्योतिष का ज्ञान सभी को होना चाहिए

 

पूज्य गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी ने सभी को मंगल आशीर्वाद देते हुए कहा कि ज्योतिष का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए । जिससे वह अपने जीवन की जीवन शैली को व्यवस्थित कर सके ।

स्वस्तिभूषण माताजी ने कहा कि जैन न्याय की विशेषता को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए । उस के माध्यम से जिनशासन, धर्माचरण श्रावक एवं श्रमन चर्या का शुद्धरूपेन पालन किया जा सकता है ।

मुरैना में 30 दिसंबर तक चलेगा कार्यक्रम

 

मुनि सेवा समिति की ओर से मनीष विद्यार्थी सागर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जैन न्याय, ज्योतिष एवं दशलक्षण का शिक्षण प्रशिक्षण 30 दिसम्बर तक अनवरत संचालित किया जाएगा ।

परम पूज्य सराकोद्धारक समाधिस्थ आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से चल रहे इस शिविर को पूज्य आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी ने पुन: नवोदित विद्वानों को शिविरों के माध्यम से जैन सिद्धांत का परिपूर्ण ज्ञान देने का कार्य प्रारंभ किया है, जो भविष्य में भी जारी रहेगा ।

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