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शिक्षा में क्रांति की आवश्यकता है- आचार्य श्री प्रज्ञासागर

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ आचार्य श्री प्रज्ञासागर मुनिराज का शिक्षा में क्रांति पर विशिष्ट व्याख्यान

उज्जैन- महेन्द्र जैन,मनुज \ 5 दिस। शिक्षा सदा से महत्त्वपूर्ण रही है। ऐसा कोई काल नहीं रहा, जब इसकी महिमा न रही हो। माताएँ अपनी – अपनी परम्परा और धर्म के अनुसार शिक्षा देती रही हैं। बड़े होने पर उन बच्चों में वैचारिक खींचतान प्रारम्भ हो जाती है। इसलिए शिक्षा में क्रांति की आवश्यकता है। नई पीढ़ी को इंसानियत सिखाने से परिवर्तन सम्भव है। आज युवा पीढ़ी में विश्वास जाग्रत करने की जरूरत है। आज जरूरी है कि विद्यालयों में मानव धर्म की शिक्षा दी जाए। दुनिया के सभी धर्म, सभी भगवान कहते हैं कि मानव बनो। विश्वास के स्थान पर विचार जगाने की दिशा में ध्यान दिया जाना चाहिए। लोगों को अनुशासित बनाने के बजाय विवेकवान बनाना चाहिए। हंस की तरह विवेक जाग्रत करने का काम शिक्षा करती है।

विवेकशील बनाने पर व्यक्ति हाँ को हाँ कह पाएगा, ना को ना कह सकेगा। जो भी पढ़ाया जाए वह बच्चों को इंसान बनाए, विवेकवान बनाए। शिक्षा संस्थाओं में सिद्धांतों के ज्ञान के साथ साथ प्रायोगिक शिक्षा भी दी जाना चाहिए। गुरुकुलों में शिक्षा देने के साथ दीक्षार्थी को कार्य करना भी सिखाया जाता था। शिक्षा केंद्रों में बच्चों को तन, मन और जीवन से मजबूत बनाने का कार्य हो। नए दौर में गुरुकुल शिक्षा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। संस्कारयुक्त शिक्षा ग्रेट बनाता है, जबकि संस्कारविहीन शिक्षा केवल ग्रेजुएट बनाती है। हमें शिक्षा पर सम्यक् ढंग से सोचने की आवश्यकता है। भारत में संन्यासियों की महिमा रही है, सत्ताधीशों की नहीं। शासन द्वारा शिक्षा नीति में परिवर्तन का कार्य किया जा रहा है, जो महत्त्वपूर्ण है। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिए जाने की जरूरत है। हिंदी को लेकर गौरव का भाव हम सब में हो, हिंदी का बहुमान होना चाहिए। शिक्षकों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, वह चाणक्य बनकर चंद्रगुप्त को तैयार करे, वह नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाए। शिक्षा बंधन में नहीं बांधती, स्वतंत्रता देती है। स्वतंत्रता, स्वछंदता नहीं है, व्यक्ति को खुले आसमान में उड़ना सिखाए, यह शिक्षा का उद्देश्य है। अज्ञात को जानने की कोशिश विद्यार्थी की होना चाहिए।

सचिन कासलीवाल ने डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में प्रसिद्ध सन्त आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज का विशिष्ट व्याख्यान हुआ। उन्होंने शिक्षा में क्रांति विषय पर व्याख्यान के माध्यम से विक्रम कीर्ति मंदिर में उपस्थित सैकड़ों सुधी जनों को लाभान्वित किया। उन्होंने आगे कहा कि बच्चे को वही बनने दें, जो वह स्वयं बनना चाहता है। अपनी जिज्ञासा के अनुरूप रास्ता तलाशने की छूट विद्यार्थी को होनी चाहिए। जैन धर्म एक जीवन शैली है, यह एक आचरण पद्धति है। जो इंद्रियों को जीत ले वह जैन है। भारतीय संस्कृति में उज्जैन का योगदान अविस्मरणीय है, इसका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जाएगा।

तपोभूमि प्रणेता आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज तपोभूमि से विहार कर सुबह 9ः30 बजे विक्रम विश्वविद्यालय के अतिथि निवास पहुंचे, जहां उनका पाद प्रक्षालन कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, कार्यपरिषद सदस्य श्री संजय नाहर, भारत अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ सचिन राय, श्रीमती शिल्पी राय, समाजसेवी श्री सचिन कासलीवाल, श्रीमती विनीता कासलीवाल, आर्या कासलीवाल, डॉ रमण सोलंकी, श्री तिलक सोलंकी एवं अन्य समाज जनों ने किया। तत्पश्चात् गुरुदेव की आहार चर्या भी वहीं पर हुई। दोपहर में 1ः00 गुरुदेव यूनिवर्सिटी केंपस स्थित विक्रम कीर्ति मंदिर पहुंचे जहां पाद प्रक्षालन विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सभी ने किया। तत्पश्चात गुरुदेव मंच पर पहुंचे, जहां सर्वप्रथम सरस्वती माता की चित्र के समक्ष अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम प्रारंभ किया। आचार्य श्री को सभी अतिथियों एवं समाज के मुख्य लोगों द्वारा श्रीफल समर्पित किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने करते हुए कहा कि महाराज श्री प्रज्ञासागर जी राष्ट्रनिर्माण में शिक्षा की भूमिका पर पर निरंतर प्रेरणा देते रहे हैं। विक्रम विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र में जैन धर्म पर केंद्रित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया जाएगा। यह पाठ्यक्रम राष्ट्र एवं समाज को दिशा देगा।

कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं महावीर तपोभूमि ट्रस्ट, भद्रबाहु प्रज्ञ…

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