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धूमधाम से निकाली गई चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा

बानपुर(प्रियंक सर्राफ मड़ावरा)। बस स्टैंण्ड स्थित महाराजा मर्दन सिंह क्रिकेट ग्राउंड में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज, मुनि श्री समत्व सागर जी महाराज, श्री प्रणत सागर, मुनि श्री सौम्यसागर, मुनि श्री साक्ष्य सागर, मुनि श्री निवृत्तसागर के मंगल सान्निध्य में चल रहे श्री मज्जिनेन्द्र शांतिनाथ चौबीसी तथा मानस्तम्भ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, विश्वशांति महायज्ञ एवं गजरथ महोत्सव में गुरुवार को दोपहर में कस्बा में चक्रवर्ती शांतिनाथ की ऐतिहासिक दिग्विजय यात्रा निकाली गई।

यात्रा का जगह -जगह भव्य स्वागत किया गया। सेना के साथ निकली यात्रा पर लोगों ने द्वार- द्वार पर फूल बरसाए। इसमें दूरदराज से भी बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु शामिल हुए। महोत्सव के प्रचारमंत्री डॉ सुनील संचय ने बताया कि यात्रा आयोजन स्थल महाराजा मर्दन सिंह क्रिकेट ग्राउंड से शुरू होकर टीकमगढ़ तिग्गडा, किले के मैदान, बाजार, मुख्य मार्गों से होते हुए निकली। चक्रवर्ती महाराज शांतिनाथ अपने सेनानायकों और सेना के साथ रथों पर सवार होकर निकले, नगर के मार्गों में जय घोष हो रहे थे और ध्वज, पताकाएं लहरा रही थी।

यात्रा में सबसे पहले हाथी, इसके बाद घोड़े और उसके बाद बग्घियां चल रही थीं। चक्ररत्न के साथ वीर सेवा संघ ललितपुर, रुद्रावतार वाद्य वैंड अमरावती महाराष्ट्र, शक्ति पीठ सेवा दल टीकमगढ़, दिल दिल घोड़ी बांदरी, विश्राश्री महिला मंडल बानपुर, सर्व सेवा साधु समिति बानपुर, महिला मंडल मड़ावरा इसके विभिन्न पाठशालाओं के बच्चे व शिक्षक नृत्य-गान करते हुए चल रहे थे। आहार जी से आए बच्चों ने अपने प्रदर्शन से सभी को आकर्षित किया। डीजे की धुनों पर युवक जमकर थिरके। यात्रा में बुंदेलखंड का प्रसिद्ध मोनिया नृत्य शामिल रहा। आयोजन स्थल मुख्य पंडाल पर यात्रा का समापन किया गया इसके बाद धार्मिक कार्यक्रम संपन्न कराए गए। नगर भ्रमण के दौरान यात्रा के बीच में नृत्य करते इंद्र-इंद्राणी लोगों का प्रमुख आकर्षण का केंद्र बने।

इससे पहले प्रातः बेला में मुनिसंघ के सान्निध्य में पाठशाला अधिवेशन का आयोजन किया गया, जिसमें जतारा, टीकमगढ़, मड़ावरा, सागर आदि स्थानों की अनेक पाठशालाओं के बच्चे व शिक्षिकाएं शामिल रहीं। इस अवसर पर मुनि श्री सुप्रभ सागर महाराज ने प्रवचन करते हुए अपनी देशना में कहा कि मनुष्य का पूरा जीवन एक पाठशाला है। मात्र मनोरंजन का साधन नहीं है पाठशाला। जहां संस्कारों का सिंचन होता है, वह पाठशाला है। बच्चे कभी सिखाने से नहीं सीखते, अपितु दिखाने से सीखते हैं। वर्तमान के भौतिकता के युग में बच्चों को उनके अनुसार तकनीकी ढंग से समझाने की आवश्यकता है।

संस्कारों को रूढ़ि से नहीं अपितु रीति-नीति से देने की जरूरत है। जिसके संस्कार नहीं, उसका कोई आकार नहीं और पाठशाला संस्कारों का पहला पायदान है। संस्कार और सभ्यता आपके घर तक पाठशाला के माध्यम से पहुंच सकती है । पाठशाला के माध्यम से धर्म और संस्कारों का जो बीजारोपण हो रहा है, उनको घर- घर में पहुंचाने की जरूरत है। उन्होंने समाज श्रेष्ठियों से आग्रह किया वे अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए पाठशाला जरूर भेजें, जिससे आने वाले समय में धर्म का ह्रास न हो। पाठशाला आपके बच्चों को वह संस्कार और सभ्यता सिखाती है, जिससे आपका बच्चा बड़ा होकर संसार में सर उठाकर जी सकेगा।
इस मौके पर शांतिधारा, शास्त्र भेंट और महाआरती का सौभाग्य चक्रवर्ती परिवार को प्राप्त हुआ।

समस्त पाठशालाओं ने सामूहिक रूप से आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज की अष्ट द्रव्य से भक्ति भाव के साथ पूजा की। चित्र अनावरण आहार जी गुरुकुल के छात्रों द्वारा किया गया। दीप प्रज्ज्वलन पारसवीर पाठशाला टीकमगढ़ द्वारा किया गया। विद्यासागर वर्णी संस्कार पाठशाला मड़ावरा की शिक्षिकाओं ने मुनिश्री को सुसज्जित शास्त्र भेंट किया। आयोजन को सफल बनाने में महोत्सव की आयोजन समिति व उप समितियों, विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों का उल्लेखनीय योगदान रहा। विधि विधान ब्रह्मचारी साकेत भैया के निर्देशन में मुख्य प्रतिष्ठाचार्य पंडित मुकेश ‘विन्रम’ गुड़गांव , प्रतिष्ठाचार्य डॉ. हरिश्चन्द्र जैन सागर, पंडित निर्मल जैन गोंदिया महाराष्ट्र, पंडित अखिलेश जैन रमगड़ा के प्रतिष्ठाचार्योत्व में सम्पन्न हुआ।
शुक्रवार को मनाया जाएगा तप कल्याणक महोत्सव के प्रचारमंत्री डॉ सुनील संचय-कपिल सराफ ने बताया कि शुक्रवार को महोत्सव में तप कल्याणक विधि विधान के साथ मनाया जाएगा, जिसमें राजदरबार, राज्याभिषेक, राजतिलक, चक्ररत्न की उत्पत्ति, महाराजा विश्वसेन का दरबार, राज्य व्यवस्था, भेंट समर्पण, दीक्षा क्रिया, महाआरती आदि कार्यक्रम निर्धारित समय पर होंगे।

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