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जो प्राप्त है वह पर्याप्त है- मुनि श्री विशल्य सागर जी

झुमरीतिलैया- श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में चौदस के पावन दिन पर मंगलवार को परम पूज्य मुनि श्री 108 विशल्य सागर जी महाराज के परम सानिध्य में देवाधिदेव आदिनाथ भगवान की प्रतिमा पर 1000 मंत्रो के द्वारा अभिषेक एवं शांतिधारा का आयोजन किया गया। शांति धारा के पश्च्यात मुनि श्री की पूजन हुई।

 

*जो प्राप्त है वह पर्याप्त है*

 

इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव ने अपने उद्बोधन में कहा कि

 

जहाँ पर जीवन में कोई बनावट नहीं है, कृत्रिमता नहीं है उसका नाम है प्रकृति का जीवन।

 

जो प्रकृति का जीवन जीता है उसका परमात्मा सदा खिला रहता है क्योंकि प्रकृति में ही परमात्मा खिलते हैं। विकृति में नहीं । अगर जीवन को अच्छा बनना है तो हमें प्रकृति का जीवन जीना होगा। हम जो जी रहे है, जीते जा रहे है वह विकृति का जीवन है। परमात्मा की कृति को सभी पढ़ना चाहते है ।अभी हम पढ़ ही तो रहे थे जिनसहस्रनाम स्त्रोत एवं वृहद शांतिधारा के माध्यम से ।

 

गुरूदेव ने कहा कि हम परमात्मा की कृति को पढ़ रहे थे। परमात्मा की आराधना कर रहे थे क्क्योंकि वह एक सुंदर कृति है और वह सुंदर कृति लिखी जाती ह़ै सद् गुणों से, सद् व्यवहार से, सदचरण से। इन्हीं से होता है सुंदर कृति का निर्माण । ये सद् जो हमारे जीवन में आ जाता है तो सभी को सद जाता है और सद जहाँ नहीं है वहाँ हमारा जीवन अनबैलेंस रहता है, अस्थाई रहता है, असाध्य रहता है।

जीवन में शान्ति की आवश्यकता है लेकिन शान्ति प्रकृति से ही आएगी। आनंद प्रकृति से आएगा । हम जब प्रकृति को निहारते है तो हमारे जीवन में शान्ति आती है और जब हम अशान्त रहते हैं, उदास रहते हैं तो आप बाहर निकल जाते है घूमने के लिए,प्रकृति के वातावरण में, कहीं उपवन में जाते है, कहीं नदी किनारे जाते है, झरने के पास जाते है और एकदम शांत वातावरण को निहारते हैं। अपने में डूब जाएँ तो जो आनंद मिलता है उसे कहीं खरीदा नहीं जा सकता है। दोष,गुण मेरे पास हैं। अपने में जाना है मुझे।

 

गुरुदेव ने कहा कि हम सोचते है कि भौतिकता में शान्ति मिले जबकि इसमें शान्ति नहीं है। हमने अपने जीवन में भौतिक संसाधनो का बहुत उपयोग किया ,बहुत जोड़ा है और जिनके पास भौतिक संसाधना है उनका जीवन देखे तो उनके जीवन में सुख कही दिखाई नहीं देता। ये सब विकृति है प्रकृति नहीं। ।प्रकृति के साधन जोड़ने पर जीवन नेचुरल हो जाता है और जब नेचुरल में आ जाता है तो उसका फ्यूचर अच्छा होता है। नेचुरल जीवन से फ्यूचर बनता है लेकिन जो फ्यूचर में जीता है उसका नेचुरल नहीं बनता ।

एक दु:खी है क्योंकि वर्तमान में रहकर भूत का जीवन जीता ह़ै। उसका जीवन भूत बन जाता है। जो बीत गया उसमें खो जाता है। भविष्य भी सपना है। उसमें भी नहीं जीना। वर्तमान में रह रहे हो तो वर्तमान में जीना। इससे भविष्य अच्छा बन जाएगा l। महापुरुषों की तस्वीर को ह्दय में बसा लो तो तकदीर अच्छी बन जाएगी।

 

कोडरमा मीडिया प्रभारी नवीन जैन, राज कुमार अजमेरा ने बताया कि इस अवसर पर विशेष रूप चातुर्मास संयोजक सुरेन्द काला, समाज के मंत्री ललित सेठी के साथ समाज के सैंकड़ों लोग उपस्थित थे।

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