चिंतन का विषय- नए मंदिर बनाएं, लेकिन पुरानों को ना भूलें
मनीष गोधा- जैन कुल में जन्मे किसी भी व्यक्ति के लिए मंदिर जाना और जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करना उतना ही जरूरी है, जितना कि प्रतिदिन भोजन करना। ये संस्कार जैन परिवारों में बचपन से ही डाल दिए जाते हैं और इसी का परिणाम है कि अधिसंख्या जैन परिवारों के लिए घर के पास मंदिर होना बहुत बडी आवश्यकता है। वस्तुतः ज्यादातर जैन परिवार जब अपने लिए कोई नया मकान ढूंढते हैं तो इस बात का ध्यान रखते हैं कि मंदिर घर के आसपास ही हो, ताकि रोज सुबह जिनेन्द्र भगवान के दर्शन हो जाएं।
जैन परिवारों की इस आवश्यकता के चलते ही जब भी कोई नई कॉलोनी बसती है तो वहां आ कर रहने वाले जैन परिवारों का सबसे पहला प्रयास यही होता है कि कैसे भी कर के जैन मंदिर का निर्माण करा लिया जाए और इसी के चलते नए जैन मंदिरों की संख्या लगातार बढती जा रही है। जयपुर की ही बात करें तो आज शहर के हर कोने में जैन मंदिर हैं।
यह स्थिति लगभग हर उस शहर की है जहां जैन परिवार बडी संख्या में रहते हैं चाहे वह जयपुर हो, इंदौर हो, उज्जैन हो या अन्य कोई भी शहर हो। जयपुर मंे तो स्थिति यह तक देखने में आ रही है कि बिल्डर अपनी कॉलोनी बेचने के लिए वहां पहले जैन मंदिर का निर्माण करा देते हैं। इससे ना सिर्फ उन्हें अपनी जमीनें और मकान बेचने में आसानी होती है, बल्कि मंुहमांगे दाम भी मिल जाते हैं।
धर्म की प्रभावना की दृष्टि से देखा जाए तो यह अच्छी बात है कि जैन मंदिरों की संख्या लगातार बढ रही है, लेकिन इसका एक साइड इफेक्ट भी सामने आ रहा है और वह यह है कि इसके चलते हम पुराने मंदिरों को भूलते चले जा रहे हैं और ये पुराने मंदिर सूने होते जा रहे हैं।
जयपुर की ही बात करें तो शहर के परकोटे के क्षेत्र में बडी संख्या मंें जैन मंदिर हैं। लगभग हर चौराहे पर आपको एक मंदिर मिल जाएगा, लेकिन जैन परिवार विभिन्न कारणों से परकोटे को छोड कर बाहर की ओर जा रहे हैं और अब स्थिति यह आती जा रही है कि परकोटे के इन मंदिरों में नियमित रूप से जाने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। कई मंदिरों में तो नियमित अभिषेक करने वालों का भी संकट आ गया है। सम्भवतः अन्य शहरों में भी यह स्थिति बन रही है।
यह एक गम्भीर चिंता की स्थिति है, क्योंकि पुराने शहर के ये मंदिर सिर्फ मंदिर नहीं है, बल्कि हमारे समाज की धरोहर हैं। इनकी वास्तुकला, निर्माण, इनमें जिन प्रतिमाएं और कई मंदिरों के पास तो ऐसी धरोहरें हैं कि जिनका कोई मोल नहीं है। ऐेसे मंे इन्हें बचाए रखना और संरक्षित रखना बहुत आवश्यक हो गया है। इस दिशा में समाज की संस्थाएं निश्चित रूप से कुछ ना कुछ कर रही हैं लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो समाज का हर व्यक्ति कर सकताा है और इस दिशा में पहला काम यही है कि नए मंदिर अवश्य बनाएं, लेकिन पुराने मंदिरों को भूलें ना और वहां भी जब मौका पडे दर्शन के लिए जरूर जाएं।
हम और आप यह कर सकते हैं-
– नया मंदिर बनाएं तो नई प्रतिमाओं के साथ ही कोशिश करें कि पुराने मंदिरो से भी प्रतिमाएं लाकर स्थापित करें। इस काम में कुछ अडचनें आ सकती है, लेकिन इस दिशा में नए मंदिर बनाने वालों और पुराने मंदिरों की प्रबंध समितियों को कुछ ना कुछ जरूर सोचना चाहिए।
– जब भी अवसर मिले किसी ना किसी पुराने मंदिर के दर्शन अवश्य करें। नियमित कर सकें तो बहुत अच्छा, लेकिन सप्ताह, 15 दिन या माह मंे एक बार किसी पुराने मंदिर के दर्शन जरूर करें।
– कभी शांति विधान पूजन या अन्य कोई विधान कराने के भाव हों तो प्रयास करें कि यह किसी पुरो मंदिर मंे कराएं।
– भादवा माह और दशलक्षण में कॉलोनियों के मंदिरों में काफी भीड हो जाती है। ऐेसें में प्रयास करें कि इन पर्वों पर पुराने मंदिरों में जा कर अभिषेक, शांतिधारा आदि करें।
ध्यान रखिए पुराने मंदिर हमारे पूर्वजों की निशानी हैं, हमारी धरोहर हैं। जिस तरह हम अपनी आने वाले पीढी को नए मंदिर बना कर धरोहर सौंपने की तैयारी कर रहे हैं, उसी तरह हमारे पूर्वज पुराने मंदिरों की धरोहर हमें सौंप गए हैं। इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी ही है और इसके लिए यह कतई जरूरी नहीं कि हम किसी संस्था या संगठन का हिस्सा बनें। एक सामान्य श्रावक के रूप में हम जो कर सकते है, बस उसे कर जाएं तो भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
चिंतन का विषय की दो कहानियां भी पढ़ लीजिए
1.चिंतन का विषय- जैन समाज के परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय
जैन समाज के परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय
समाज की संस्थाओं में समाज के ही युवाओ को मिले प्राथमिकता
जयपुर, 14 नवम्बर। बदलते कारोबारी एवं आर्थिक परिदृश्य, नीतिगत कारणों तथा देश में रोजगार के अवसरों की स्थितियों के चलते जैन समाज में भी बड़ी संख्या में परिवारों की आर्थिक स्थिति चिंतनीय बनती जा रही है। दान-पुण्य की प्रवृत्ति के चलते आमतौर पर जैन समाज को समृद्ध और सम्पन्न समाज की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन वास्तविक स्थिति इससे इतर है। अब जैन समाज के ही काफी परिवार विषम आर्थिक हालातों का सामना कर रहे हैं। कई परिवारों के सामने दैनिक आजीविका का संकट है तो कई परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा या रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने में सक्षम नहीं है, इसके चलते परिवारों में बिखराव, तनाव और असंतुष्टि का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही आर्थिक स्थिति प्रतिकूल होने के कारण धर्म से भी जुड़ाव धीरे-धीरे कम होने लगा है। (पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें )
2. संतों के आहार-विहार से पीछे हट रहा समाज
जयपुर, 7 नवम्बर। जैन तीर्थंकरों ने दुनिया को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाया और जैन संत लगातार इन सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अणुव्रतों और कठोर सिद्धांतों की पालना के साथ ही मानवमात्र को जीवन की सही राह दिखाने के कारण जैन संतों का पूरे विश्व में विशिष्ट मान-सम्मान है।
सम्पूर्ण जैन समाज को इस पर गर्व की अनुभूति भी होती है, लेकिन चिंता का विषय है कि अब जैन समाज ही जैन साधु-साध्वियों के मान-सम्मान और गौरवशाली विरासत को बरकरार रखने में पीछे हटने लगा है। (पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें )