क्षमा मूर्ति, सेवापुंज,108 श्री सुब्रत सागर जी महाराज के 45वें अवतरण दिवस पर विशेष
गुरु मुख से झरे मोतियों की वे माला बनाते है’
’परमाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी मुनीन्द्र के मनीषी शिष्य क्षमा मूर्ति, सेवापुंज 108 श्री सुब्रत सागर जी महाराज का आज 45 वां अवतरण दिवस है और यह अवसर हम सभी धर्मप्रेमी बंधुओं के लिए परम सौभाग्य का अवसर बने, इसके लिए प्रस्तुत है उनका जीवन परिचय-
क्षमा मूर्ति, सेवापुंज 108 श्री सुब्रत सागर जी महाराज ऐसी विभूति हैं जो ’गुरु मुख से झरे मोतियों की अपने कर्मठ हाथों से माला बनाते हैं और फिर गुरु परिवार की चेतना की मूर्ति को पहिनाते है। ’आप स्व के साथ पर के आत्मप्रदेश में ज्ञान के दीप प्रज्जवलित करते हैं। ’आप ने अपने गुरु के अनमोल मोतियों को प्रसाद की तरह वितरित करने का बीड़ा उठाया है।
महाराज श्री की रूचि रुचि लेखन में है और आचार्य श्री ने अभी तक जितने ग्रंथो को लिखा (लगभग 140 से अधिक), चिंतन किया उन सब के संकलन कर्ता मुनि श्री सुब्रत सागर जी ही हैं।
आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में
पूर्व नाम – बाल ब्रह्मचारी श्री भारत विजय जैन (भरतेश)
पिता श्री- प्रकाश चंद्र जी जैन
माता श्री -श्रीमती मुन्नी देवी जैन
जन्म स्थान- आरोन ,जिला गुना
जन्म तिथि- 14 नबम्बर 1977
शिक्षा- बीए, एमए,
ब्रह्मचारी व्रत- 2007
मुनि दीक्षा- 14 अक्टूबर 2009
दीक्षा स्थल- अशोकनगर
दीक्षा गुरु- परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
विशेष- अध्ययन / लेखन में रुचि
’आपके लघु भ्राता भी विश्व वंदनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी के संघ में मुनि श्री निस्सीम सागर जी हैं। -प्रस्तुति राजेश जैन दद्दू