बाह्य नहीं, आंतरिक लक्ष्मी को पाने का पर्व
आर्यिका स्याद्वादमती
सब इस बार फिर दीपावली मनाने जा रहे हैं। इस अवसर पर भगवान महावीर निर्माणोत्सव पर लड्डू भी चढाएंगे, लक्ष्मी पूजन भी करेंगे, धनतेरस पर बर्तन भी खरीदेंगे और रूप चौदस पर खुद को संवारते हुए प्रतिदिन दीप जलाएंगे ….. पर क्या वास्तव में बस यही दीपावली है ? जवाब होगा ….. नहीं। दीपावली तो इससे कई अधिक गूढ़ अर्थ लिए तर्कसंगत आध्यात्मिक साधना का पर्व है।
‘गौतम गणधर और भगवान महावीर के बीच हुए एक वार्तालाप का अंश’
गौतम गणधर- भगवन् मुझे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति कब होगी ?
भगवान महावीर- जब तक मोह का नाश नहीं होगा तब तक तुम्हें कैवल्य ज्योति प्रकट नहीं होगी।
गौतम गणधर- भगवन् ! मुझे किसका मोह ?
भगवान महावीर- जब तक तुम्हारा मुझसे राग है, कैवल्य में बाधक है।
गौतम गणधर- यह राग कब दूर होगा ?
भगवान महावीर- जब मुझे मोक्ष प्राप्त होगा तब।
तद्नुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की अमावस्या की प्रभात बेला में महावीर भगवान् ने पावापुर सिद्ध क्षेत्र के निर्वाण को प्राप्त किया और उसी अमावस्या की शाम गौतम गणधर स्वामी को कैवलय ज्ञान प्राप्त हुआ। यही दिन दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दीपावली पर प्रतिदिन दीप क्यों जलते हैं ? यह प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक है। दीपमालिकाएं कैवल्य ज्ञान का प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो, अंधकार का नाश हो इस भावना से दीप जलाए जाने चाहिए।
आइए अब जानते हैं पांच दिवसीय दीपपर्व के प्रत्येक दिन का महत्व
धनतेरस
दीपावली पर्व का प्रथम दिन धनतेरस नहीं अपितु धन्यतेरस है। भगवान महावीर ने कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन बाह्य समवशरण लक्ष्मी का त्याग करके मन, वचन, काय का निरोध किया। वीर प्रभु के योगों के निरोध से यह त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसलिए ‘धन्यतेरस’ पर्व त्याग करने की कला सिखाने वाला पर्व कहलायाए पर अज्ञानवश हम इस दिन सोना खरीदना, बर्तन खरीदना आदि परिग्रह संचय करके इसकी रस्म पूरी करते हैं। होना तो यह चाहिए कि इस दिन मन, वचन, काय से कुचेष्टाओं का त्याग करें। बाह्य लक्ष्य से हटकर अंतर के शाश्वत स्पर्ण रत्नत्रय की खोज करें।
रूप चौदस
पर्व का दूसरा दिन रूप चौदस है। इस दिन भगवान महावीर ने 95,000 शिलों की पूर्णता को प्राप्त किया था। वे रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त हुए थे। अयोगी अवस्था से स्वरूप में मग्न हुए थे। अतः रूप चौदस अपनी आत्मा को शील-सत्य-सदाचार से सजाने की कला सिखाता है। इस दिन ब्रह्मचर्य में रहकर व्रतादि स्वभाव में लाने का प्रयत्न करना सच्ची रूप चौदस मनाना है।
दीपावली
इस पावन दिन भगवान महावीर को निर्वाण लक्ष्मी प्राप्त हुई थी, इसलिए आत्मसुख प्राप्त्यर्थ हमें भगवान महावीर की पूजा करनी चाहिए। अमावस्या की शाम गौतम गणधर स्वामी को कैवल्य ज्ञानरूपी लक्ष्मी का साथ मिला था, पर हम सब आज निर्वाण को भूल लक्ष्मी की पूजा करने लगे। अरे चंचल लक्ष्मी पुण्य की चेरी है, पुण्य करो। पुण्य के अभाव में लक्ष्मी आपको छोड़ ही जानी है। धर्म को छोड़ लक्ष्मी के पीछे मत दौड़ो। अतः इस दिन भगवान महावीर व गौतम गणधर का पूजन करना चाहिए।
गोवर्द्धन पूजा
भगवान की दिव्य ध्वनि स्थात्, अस्ति-नास्ति, अवक्तव्य आदि सात रूपों में खिरी थी, इसलिए यह गोवर्द्धन दिन माना गया। ‘गो’ यानि जिनवाणी, वर्द्धन यानी प्रकटित होना या बढ़ना। इस दिन तीर्थंकर की देशना के अभाव के पश्चात् पुनः जिनवाणी का प्रकाश हुआ, वृद्धि हुई, इसलिए जिनवाणी की पूजा करना चाहिए। पर अज्ञानतावश रूढ़ियों में फंसकर सत्यता का गला घुट रहा है। प्रायः घर में गोबर से एक चित्र बनाया जाता है। एक मां और बच्चे आदि रूपों से उसकी चित्रावली बन घर-घर में पूजा होती है। इस चित्र को सप्तपूत मां नाम देते हैं। महानुभावों सत्यता यह है कि यह जिनेन्द्रदेव अरहंत के मुखकमल से प्रस्फुटित मां जिनवाणी है। सप्त भंग उसके पुत्र हैं। सप्तपूत की मां यानी जिनवाणी, उसकी आराधना करो। स्वाध्याय करो।
निर्वाण लाडू क्यों
सभी नैवेद्य में प्रिय है लड्डू। सभी को दुःखों से छूटकर प्रिय क्या है- मुक्ति। प्रिय वस्तु का त्याग करना होता है। लड्डू को मोदक भी कहते हैं। यह मुद् धातु से बना है। मुद् का अर्थ आनंद है। मोद, आनंद देने वाला मोदक है। अविनाशी आनंद के प्राप्त्यर्थ मोदक चढ़ाया जाता है। लड्डू को आगे-पीछे मध्य कहीं से भी खाओ मीठा ही मीठा है। उसी प्रकार मोक्ष के किसी भी क्षेत्र से कभी भी जाइए सुख ही सुख है। मोदक मोक्ष के अनादिकालीन सुख का द्योतक है।
ध्यान रहे, निर्वाण दिवस पर लाडू (लड्डू) चढ़ाने की प्रथा मात्र काल्पनिक या रूढ़िमात्र नहीं, इसके पीछे बहुत रहस्य है। इसका नाम आते ही मुख में पानी नहीं, मन में जिनवाणी के चिन्तवन मात्र से आनंद प्राप्त होना चाहिए।
इस प्रकार दीपावली अज्ञानरूपी अंधकार से निकलकर ज्ञानपुंज में आने का पर्व है। दीपावली बाह्य लक्ष्मी का त्याग कर अंतरंग लक्ष्मी पाने का पर्व है। यह जीवन के कष्टों से मुक्ति पा मोक्ष जाने का पर्व है। इसे इसी गरिमा से मनाएं। प्रण लें कि प्रत्येक वर्ष दीपावली आडंबर के लिए नहीं अपने कल्याण की भावना लाते हुए लड्डू चढ़ाएं, पूजा करें और जिनवाणी मां की आराधना करें।