पड़ोसी सुखी है तो उसके पुण्य की सराहना करने का दिया मंत्र
श्रमण संस्कृति संस्थान के छात्र- छात्राओं को उपदेश
ललितपुर. राजीव सिंघई । श्री अभिनन्दनोदय अतिशय तीर्थ में श्रमण निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागर महाराज ने श्रमण संस्कृति संस्थान के छात्र- छात्राओं को धर्मामृत पिलाते हुए कहा कि हम दूसरे को सुखी देखना ही नहीं चाहते। अगर हम दुखी हैं तो दूसरों को भी दुखी देखना चाहते हैं। आपको नींद नहीं आ रही, रात भर करवट बदल रहे हैं पर बाजू वाला खर्राटे मारकर सो रहा है। बताओ तुम्हें कैसा लग रहा। अंदर से भाव उत्पन्न हो ही जाते हैं कि मैं रात भर से जाग रहा, मैं मर रहा हूं, पर ये आराम से चैन की नींद सो रहे हैं। हम रोगी हैं तो निरोगी को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो सुख हमारे पास है नहीं, दूसरों में देखते हैं तो हम कुढ़ने लगते हैं।
ईर्ष्या के साथ साथ बद्दुआ भी देते हैं कि मुझे नींद नहीं आ रही, इसको भी न आये। मैं दुखी हूं, ये भी दुखी हो जाये। मैं फेल हो गया, ये भी फेल हो जाए। मैं रोगी हूं ये भी रोगी हो जाए। मनुष्य की पहली कमजोरी ईर्ष्या करना और दूसरी बद्दुआ देना है। ये सुखी क्यों, यह ईर्ष्या है और ये भी दुखी हो जाये ये बद्दुआ। मुनिपुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि ये पापी का लक्षण है, अधर्मी का लक्षण है। उन्होंने सीख देते हुए कहा कि अगर तुम दुखी और पड़ोसी सुखी है तो उसके पुण्य की सराहना करो कि पूर्व में उसने पुण्य किया, उसी का परिणाम है कि आज वह सुखी है। कभी- कभी हम भगवान को भी दोष देने में नहीं चूकते हैं कि भगवान मैं दुखी हूं और पड़ोसी सुखी है।
आपने ऐसा पक्षपात क्यों किया। अगर मैं दुखी हूं तो पड़ोसी को भी दुखी करना था। हम अपने आप को दोष नहीं देते कि मेरे जीवन में जो दुख हैं, उसमें मेरा ही दोष है क्योंकि अतीत में मैंने किसी को दुखी किया होगा तो उसका फल मैं आज भोग रहा हूं। पर हमें अपने दोष नहीं दिखते, भगवान को भी पक्षपाती बना देते हैं। मुनिश्री ने सुखी और निरोगी होने का मंत्र बताते हुए कहा कि सुखी आदमी को देखकर कुढ़ो मत, उसे बद्दुआ मत दो परन्तु उसकी प्रशंसा करो। उनके पुण्य की सराहना करो, यही सुखी होने का रहस्य है। व्यक्ति अपने अपने पुण्य- पाप से दुखी और सुखी होता है। जैसा करोगे वैसा भरोगे।
पाप का बीज बोओगे तो उसमें फल भी दुख के लगेंगे। सीधा सा सिद्धान्त है कि जो बोओगे वही काटोगे। इसलिए दूसरों की बढ़ती देख कभी न ईर्ष्या भाव करूं। इस भाव के साथ जीवन जियें। कार्यक्रम का संचालन मंहामंत्री डा. अक्षय टडैया ने किया। धार्मिक आयोजन समिति के संयोजक मनोज बबीना ने बताया कि आज समयसार शिक्षण शिविर के अंतिम दिन प्रातः परीक्षा होगी और सभी विद्यार्थी प्रातः देवगढ़ और गोलाकोट जाकर प्रभु वंदना करेंगे।
इसके पूर्व प्रातःकाल मूलननायक अभिनंदनाथ भगवान का श्रावकों ने अभिषेक किया।
इसके उपरान्त मुनि श्री के मुखारविन्द से शान्तिधारा आणिकार नागेन्द्र निश्चय बेंगलुरु, तरूण काला मुम्बई, चंदावाई संदीप सरार्फ के द्वारा हुई। तदुपरान्त श्रावक श्रेष्ठि परिवारों ने आचार्य श्री के चित्र का अनावरण एवं मुनि श्री का पादप्रक्षालन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। बुधवार को निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज को आहार किरन प्रकाश शास्त्री कोटा, मुनि पूज्यसागर महाराज को आहार सांगानेर बालिका विद्यालय की छात्राओं को संजीव कुमार ममता स्पोर्ट के आवास पर, ऐलक धैर्यसागर को आहार नीरज चढ़रउ परिवार एवं क्षुल्लक गम्भीर सागर महाराज को आहारदान का पुर्ण्याजन अमित कालू इमलिया परिवार को मिला।