आलेख

औरों को खुशियां देने से मनेगी सच्ची दिवाली

झिलमिल जैन(आस्था)| कहते हैं कि दिवाली हमेशा दिलवालों की होती है। चाहे गरीब हो या फिर अमीर, जिसका दिल बड़ा नहीं, उसकी दिवाली भी नहीं। दिवाली एक महान पर्व है, यह अपनी आत्मा में ज्ञान का दीपक जलाने का पर्व है, ठीक उसी तरह से, जिस तरह भगवान महावीर और भगवान राम ने जलाया था। गौतम स्वामी ने अपने तरीके से ज्ञान का प्रकाश चहुं ओर फैलाया लेकिन ऐसा लगता है कि आज हम सही मायने में दिवाली मनाना ही भूल गए हैं। यह खुशियों का त्योहार है, यह हर किसी के साथ अपनी खुशी बांटने का त्योहार है।

जैसे भगवान राम के वनवास से 14 वर्ष बाद लौटने पर राजमहल के साथ नगर में खुशियों के दीप जलाए गए थे, ठीक वैसे ही हमें भी अपनों की खुशियों के दीप जलाने हैं। हमें किसी भी जीव की हत्या कर खुश नहीं होना है। भगवान महावीर ने एक संदेश दिया था, जियो और जीने दो लेकिन आज का संदेश बन गया है, ना खुद जियो और ना दूसरों को जीने दो। हमेशा याद रखें, जो खुशियां देता है, उसे खुशियां ही खुशियां जरूर मिलती हैं। भगवान महावीर ने समस्त संसार को खुशियां दीं और अपनी निज आत्मा की साधना कर दिवाली के शुभ मुहूर्त में सिद्धालय में जाकर अनंत सुख को प्राप्त कर लिया।

इसी के परिणामस्वरूप गौतम गणधर मिलने से उनकी दिव्य वाणी खिरी। अपने समर्पण और भक्ति के कारण वह अपने आराध्य प्रभु से दूर नहीं रहे और शाम को भी वह भी मोक्ष चले गए। सिद्धालय में जाकर उनकी आत्मा अपने प्रभु में लीन हो गई। उन्होंने निज आत्मा में ज्ञान रूपी दीपक जलाकर सुख को प्राप्त किया, इसलिए हम भी आज यही संकल्प लें कि हम भी ज्ञान रूपी दिवाली मनाएं, हम भी प्रभु के समक्ष निज आत्मा का दीपक जलाएं, जिसे हमारी कर्मों का क्षय हों, दिवाली खुशियों वाली बने और हमारे जीवन में भी सुख, शांति और देव, शास्त्र, गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा उत्पन हो।

हम भी जिनेंद्र प्रभु के मार्ग पर चलें। हम इस बार पटाखे ना चलाएं और ना चलवाएं। यह भी संकल्प लें कि हम किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करेंगे। अगर हम किसी का दीपक जला नहीं सकते तो उसके दीपक बुझाने का भी कोई हक नहीं है। जीवन में खुशियां दें और खुशियां लें, तभी होगी हमारी सच्ची दिवाली।

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