- जैन शासन तो महसूस करने का शासन
न्यूज सौजन्य-कुणाल जैन
प्रतापगढ़। आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने सोमवार को धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है कि भव्यात्माओं! यदि आप ऐसा मानते हैं कि मेरे बिना पत्ता भी नहीं हिलता तो आपसे बड़ा कोई मूर्ख नहीं है। तुम अपने शरीर के कर्ता भी नहीं हो तो इस संसार की वस्तुओं के कर्ता कहां से बन जाओगे। यदि आप स्वयं को सबकुछ मानते हैं तो जिनवाणी का श्रवण करना पथ्र पर पानी डालने के समान है। पानी भी व्यर्थ और जिनवाणी श्रवण भी व्यर्थ। पर-वस्तु में अपनापन देखोगे तो आकुलता होगी, राग-द्वेष होगा। ये घर मेरा, ये परिवार मेरा, ये गाड़ी मेरी तो आगे दुख ही दुख है।
आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने अपने सम्बोधन में आगे कहा कि तू पर-वस्तु में अपनापन देखकर अपने परिणाम को ही खराब कर रहा है। मैं शुद्धात्मा हूं, यह सुनने से ही शुद्ध नहीं होगे। गुलाब जामुन मीठा है, कहने से ही क्या मीठा हो जाएगा। स्वाद को चखना पड़ेगा। तभी उसकी मिठास का पता चलेगा। शुद्ध होने के लिए भी यही स्थिति है।
भव्यात्माओं! जैन शासन देखा-देखी का शासन नहीं है। जैन शासन तो महसूस करने का शासन है। जैन हो तो जैन धर्म का अनुभव होना चाहिए। दुनिया के कहने से कुछ नहीं होता, मैं सम्यक दृष्टि हूं। जैसे इमली का नाम सुनते ही मन में स्वाद आ जाता है कि खट्टी होती है,वैसे ही आपकी प्रकृति सम्यक दृष्टि है, हर पल यह याद रखना ही है।
आचार्य जी ने राजा श्रेणिक के उस कथन का स्मरण कराया जिसमें उन्होंने कहा था-जो व्यक्ति पर-वस्तु को अपना मानता है, वो मिथ्यादृष्टि है।