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स्वयं के प्रति जीवन वात्सल्य से भरपूर तो फिर रक्षाबंधन सार्थकः आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी

  • 1008 श्री श्रेयांस नाथ भगवान का पूजन कर निर्वाण लाडू चढ़ाया
  • सभी पूर्वाचार्यों को अर्घ्य समर्पित किए गए

न्यूज़ सौजन्य- राजेश पंचोलिया

श्रीमहावीरजी। रक्षाबंधन का पर्व वात्सल्य पूर्णिमा का दिन है। वात्सल्य पूर्णिमा तो धर्मात्माओं और भक्तों के संबंध की बात है।जब जीवन में धर्म आता है तो हमारी आत्मा भी भगवान बन सकती है। यह उद्गार वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने श्री महावीरजी में रक्षाबंधन वात्सल्य पूर्णिमा पर आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए।

मंगलाचरण पूनम दीदी, दीप्ति दीदी, नेहा दीदी ने किया। गजु भैया, समर कंठाली, साधना दीदी, नेहा दीदी, दीप्ति दीदी, पूनम दीदी, संगीता पंचोलिया, मीना प्रधान द्वारा सुंदर मंडल की रचना की गई। सर्वप्रथम 1008 श्री श्रेयांस नाथ भगवान का पूजन कर निर्वाण लाडू श्री फूलचंद नरेश जी, श्री विमल जी झांझरी परिवार दूदू राजस्थान द्वारा आचार्य श्री संघ सान्निध्य में चढ़ाया गया। आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी, चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष श्री राजकुमार सेठी जयपुर एवं राजेश पंचोलिया इंदौर ने बताया कि श्री अकम्पनाचार्य तथा 700 मुनिराजों की पूजन अर्घ्य मंडल पर 14 पुण्यार्जक परिवारों 700 श्रीफल मंडल विधान पर 1 ब्रह्मा गजु भैया, पूनम दीदी, दीप्ति दीदी, किरण दीदी, 2 श्री महावीर जी, श्री विनोद जी, श्री कैलाश जी पाटनी किशनगढ़, 3 श्री जय कुमार, श्री गोपाल जी निवाई, 4 श्री नवरत्न जी पाटनी जयपुर, 5 श्री छोटू जी विजय नगर, 6 श्री विजय कुमार, श्री दिलीप जी कासलीवाल, 7 श्रीमती तारा देवी जी सेठी परिवार जयपुर कोलकाता, 8 श्री बाबूलाल जी, श्री राजकुमार जी बौली, 9 श्री समर कंठाली एवं साधना दीदी इंदौर, 10 श्री पारस जी पाटनी इचलकरंजी, 11 श्री मांगीलाल जी, श्री रतन लाल जी पारसोला, 12 श्री राकेश जी मित्तल, 13 श्री फूलचंद जी, श्री नरेश जी, श्री विमल जीश्री सुरेश जी झांझरी, 14 श्रीमती मीना श्री दीपक जी प्रधान धामनोद, श्रीमती संगीता पंचोलिया इंदौर द्वारा अर्घ्य समर्पित किए गए।

महाउपकारी श्री विष्णु कुमार महा मुनिराज तथा प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी का पूजन किया गया। सभी पूर्वाचार्यों को अर्घ्य समर्पित किए गए। वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का विशेष द्रव्यों से चरण प्रक्षालन, श्री किशोर जी श्रीमती विमला जी काला गोहाटी पुण्यार्जक परिवार द्वारा किया गया। आचार्य श्री ने मंगल देशना में कथानक के माध्यम से श्री विष्णु कुमार महामुनिराज के वात्सल्य बाबत बताया कि किस प्रकार हस्तिनापुर में परमपूज्य 108 श्री अकंपनाचार्य जी एवं 700 मुनिराजों का उपसर्ग विक्रिया रिद्धि की सहायता से दूर कर सभी साधुओं के जीवन की रक्षा की। आज रक्षाबंधन के दिन 700 मुनिराजों का उपवास के बाद पारणा हुआ। आचार्य श्री ने प्रथमाचार्य चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांतिसागर जी के बारे में बताया कि सन् 1948 में मुम्बई सरकार के कानून- अनेक जैन मंदिरों पर जबरन कब्जे, दिगम्बर जैन मंदिर अकलुज में विधर्मियों के जबरन प्रवेश के विरोध तथा जिन मंदिर आयतनों की रक्षा, आचार्य श्री शांति सागर जी ने धर्म परम्परा संस्कृति की रक्षा के लिए अपने जीवन को संकट में लेकर कई दिनों तक उपवास फिर 1105 दिनों तक अन्न का त्याग किया। बम्बई कोर्ट के जैन धर्म की मान्यता, स्वत्रंत अस्तित्व स्वीकारने सम्बंधी निर्णय के बाद वात्सल्य रक्षाबंधन के दिन 16 अगस्त 1951 को बारामती में न्यायालय का निर्णय देखने के बाद अन्न ग्रहण किया था।

आचार्य श्री ने आगे बताया कि आपने अभी श्री विष्णु कुमार महामुनी की कथा सुनी है। इस कथा को सुनकर ऐसा लगा कि इस कथा में बहुत बड़ा रहस्य भरा हुआ है। अब कैसे आप गुरुजनों की रक्षा करें। गुरु भक्तों का यह कर्तव्य होता है कि आज के दिन वह इस बंधन में बंधे कि देव शास्त्र, गुरुओं, धर्म आयतनों, जिन मंदिरों तथा ऐसे निर्ग्रन्थ मोक्ष मार्ग पर चलने वाले, वीतराग पथ पर चलने वाले अपने चारित्र का ठीक- ठीक से पालन करने वाले और अपनी आत्मा में, धर्मात्माओं की अधर्म से, अपनी आत्मा की रक्षा कर सकें, इसलिए हमें रक्षाबंधन पर्व मनाना है।

आचार्य श्री ने आगे बताया कि पहले हमें अपनी आत्मा के प्रति वात्सल्य से भरपूर हो जाना चाहिए। यदि हमारा जीवन स्वयं के प्रति वात्सल्य से भरपूर है तो फिर रक्षाबंधन सार्थक हो जाएगा। गुरुजनों के पास धागा लेकर आना चाहिए कि भगवान आज यह सूत्र आपके यहां लेकर इसलिए आए हैं कि हम रक्षा के लिए बंधन में बंध रहे हैं। आज से धर्म का आसरा, सहारा लेकर चतुर्गति के दुखों से हम अपनी आत्मा की रक्षा करेंगे।
आत्मा का कोई बीज मंत्र इस संसार में नहीं है। आत्मा तो स्वयं विद्यमान है। स्वयं सिद्ध होने की शक्ति सहित है। और धर्म जब हमारे जीवन में उतरता है तो हमारी आत्मा भी भगवान बन जाती है।

संघस्थ पूनम दीदी, दीप्ती दीदी, नेहा दीदी ने बताया कि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने प्रवचन में बताया कि दूसरों के कष्टों को दूर करने के लिए बंधन में बंधने का यह वात्सल्य रक्षाबंधन पर्व हमें यह संदेश देता है कि पहले अपनी रक्षा, फिर धर्म की रक्षा, धर्मात्माओं की रक्षा, फिर अन्य लोगों की रक्षा करने का भाव हमारे भीतर जाग्रत होना चाहिए। और हम तो यह कहना चाहते हैं कि हमारा जीवन संयमित बन जाए जिससे हमारे चलने- फिरने, उठने- बैठने- बोलने में किसी को कष्ट नहीं हो तो हम प्राणी मात्र की रक्षा कर सकते हैं। यही बात हमारे जीवन में आ जाए तो यह पर्व मनाना सार्थक है। यह पर्व आप सबके लिए मंगलमय हो, आप धर्म रक्षा में धर्मात्माओं की रक्षा में सक्षम बने, आपमें वह सामर्थ्य, शक्ति भाव प्रकट हों, आपमें वह भीतरी बल प्रकट हो जिससे धर्म और धर्मात्माओं की रक्षा करने में सदा तत्पर रहेंगे, आत्मरक्षा करेंगे अपने स्वयं को पापों से बचाएंगे। धर्म को स्वयं धारण करेंगे। हम परमात्मा पद प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर सकें, आप सबके जीवन में यह मंगल भावना उत्पन्न हो, इसी मंगल भावना के साथ अहिंसा परमो धर्म की जय।

कार्यक्रम का सुंदर प्रभावी संचालन तथा पूजन बाल ब्रह्मा नेहा दीदी ने तथा श्री मुकेश जी पंडित जी महावीरजी ने कराया।

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प्रकाश श्रीवास्तव

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