न्यूज़ सौजन्य -राजेश पंचोलिया
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बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती गुरु नाम गुरु प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री शान्तिसागर जी महामुनि के द्वारा रक्षाबंधन के पावन दिन 1,105 दिन पश्चात अनाज का आहार लिया।
प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी ने दिगम्बर मंदिर में विधर्मियों के प्रवेश के विरोध में जैन समाज में जागरुकता एवं जैन धर्म के अस्तित्व, संस्कारों, आगम की की रक्षा के लिए 1,105 दिन तक आहार में अनाज का त्याग किया।
भारत के सर्वोच्य न्यायालय के आदेश कि जैन धर्म का अस्तित्व एवं हिन्दू धर्म का अस्तित्व, पूजा पद्धति, मान्यता अलग- अलग हैं।
इस निर्णय के बाद रक्षाबंधन के दिन आहार में अनाज ग्रहण किया। शास्त्रीय प्रमाण है कि 700 मुनिराजों का उपसर्ग श्री विष्णु मुनिराज के प्रयासों से रक्षाबंधन के दिन दूर हुआ था। इस कारण रक्षाबंधन के दिन विष्णु मुनिराज सहित 700 साधुओं का विशेष पूजन किया जाता है-
आचार्य श्री शांति सागर जी का परिचय
भोज ग्राम के श्रीमती सत्यवती जी श्री भीमगोड़ा जी पाटिल के यहां सन् 1872 में 1008 श्री वासु पूज्य भगवान के गर्भ कल्याणक दिवस आषाढ़ कृष्णा 6 विक्रम संवत 1929 के दिन एक महामना का जन्म हुआ जिनका नाम सात गोंडा जी रखा गया। आपसे बड़े 2 भाई तथा एक भाई छोटा तथा एक बहन भी थी। आपमें बचपन से ही धार्मिक संस्कार रहे। 18 वर्ष की उम्र में अपने बिस्तर का त्याग कर दिया था।
- आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत आपने 18 वर्ष की अल्पायु में श्री सिद्ध सागर जी से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया।
- 25 वर्ष की उम्र में जूते- चप्पल का त्याग कर दिया ।
- 32 वर्ष की उम्र में अपने सम्मेद शिखर जी की यात्रा की और घी- तेल का आजीवन त्याग कर दिया।
- शिखर जी की यात्रा के बाद 32 वर्ष की उम्र में ही एक समय भोजन का नियम ले लिया। जीवन में आपने एक समय ही भोजन किया।
- एक आत्मा जो पुण्यात्मा, इसके बाद धर्मात्मा बनकर परमात्मा बनने की राह पर है, उनका गुणानुवाद-
- सन् 1915 में आपने उत्तर ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा श्री देवेंद्र कीर्ति जी स्वामी से ली।
- ऐलक दीक्षा आपने गिरनार यात्रा सन् 1918 में 1008 श्री नेमिनाथ भगवान की 5वी टोंक पर स्वयं ने ऐलक दीक्षा ली।
- सन् 1920 में यरनाल कर्नाटक में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की।
- आपको सन् 1924 में आचार्य पद दिया गया।
- सन् 1925 में श्री श्रवण बेलगोला महामस्तकाभिषेक के बाद गुरुणा गुरु की उपाधि दी गई।
- आपने दीक्षा गुरु श्री देवेंद्र कीर्ति जी को पुनः मुनि दीक्षा दी। इसलिए भी गुरुणा गुरु कहा जाता है।
- सन् 1937 में आपको चारित्र चक्रवर्ती पद दिया गया।
- जिनवाणी संरक्षण आपकी प्रेरणा से धवल जय धवल टीका वाले षटखंडागम महाबंध कषाय पाहुड ग्रन्थ त्रय को 50 मन तांबे पर 2,664 पत्रों पर अंकित कराया। यह ग्रंथ आज भी फलटण में सुशोभित विराजित है।
उपसर्ग
- आपके जीवन मे सर्प के कोंगनोली, गोकाक, कौंनुर, शेडवाल आदि 5 से अधिक अनेक उपसर्ग, सिंह के गोकाक मुक्तागिर जंगल, श्रवण बेलगोला यात्रा सोनागिर, बावनगजा द्रोण गिरीसिद्ध क्षेत्रों 6 से अधिक उपसर्ग से अधिक मकोड़े के चींटी के मानव जन्य उपसर्ग हुए हैं। आपने नाम अनुरूप शांति के सागर बनकर उपसर्ग सहन किए।
- आपने अपने जीवन के साधु जीवन के 40 वर्षों में 9,938 उपवास किए।
- आपने 26 मुनि दीक्षा प्रदान की
- प्रथम मुनि शिष्य श्री वीरसागरजी
- 4 आर्यिका दीक्षा
- प्रथम आर्यिका श्री चन्द्रमति जी
- 16 ऐलक दीक्षा
- प्रथम ऐलक श्री पारस सागर जी
- 28 क्षुल्लकदीक्षा
- प्रथम क्षुल्लक
- श्री नेमकीर्ति जी
- 14 क्षुल्लिका दीक्षा
- प्रथम क्षुल्लिका
- श्री शांतिमति जी
- कुल 88 आपने दीक्षाएं दीं।
- आपके बड़े भाई ने भी आपसे मुनि दीक्षा लेकर मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी बने।
- आपने 9,938 उपवास किए हैं।
- 1,105 दिन तक अनाज का त्याग विधर्मियों के मंदिर प्रवेश के विरोध में किया।
- 8 वर्षों तक श्रावको ने केवल दूध चावल पानी दिया।
- 8 दिन तक आहार में पानी ही नहीं दिया।
- ललितपुर चातुर्मास सन् 1929 में सभी रसों का आजीवन त्याग किया।
- 24 अक्टूम्बर 1951 में गजपंथा जी में 12 वर्ष की नियम सल्लेखना ली।
- 26 अगस्त 1955 को लिखित पत्र से मुनि श्री वीर सागर जी को आचार्य पद दिया।
- 36 दिन की सल्लेखना में 18 सितम्बर 1955 को आपकी उत्कृष्ट समाधि हुई।
वर्तमान में आपकी मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा में पंचम पट्टाधीश पद को वर्ष 1990 से वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी सुशोभित कर वर्ष 2021 का चातुर्मास कोथली में करने के बाद अब गुरुदेव का श्रीमहावीरजी अतिशय क्षेत्र राजस्थान में वर्ष 2022 का वर्षायोग स्थापित किया है। उल्लेखनीय है कि 24 वर्ष बाद आयोजित 1008 श्री महावीर स्वामी के महामस्तकाभिषेक के लिए श्रीमहावीरजी अतिशय क्षेत्र राजस्थान में विराजित है।