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अपने अंदर की वीतरागत देखने का प्रयास कीजिएः आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज

न्यूज सौजन्य – कुणाल जैन

प्रतापगढ़। आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने भक्तजनों और श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है कि भगवान महावीर के सान्निध्य में बैठकर उनकी वीतराग मुद्रा को देखकर अपने अंदर की वीतरागत देखने का प्रयास कीजिए। भगवान महावीर ती देशना सुनने के बाद भी खुद का नहीं नापा-तोला तो फिर देशना सुनना व्यर्थ है। बहुत पुरुषार्थ करके आप यहां आए हो। आप अपने जीवन की वास्तविकता जानते हैं। आप अपने अथक प्रयास से, पुरुषार्थ से यहां तक आ गए हैं। नरक लोक से मध्य लोक में आ गए हैं। आप स्वर्ग, मोक्ष के पथ पर जा सकते हौ। संकल्प भाव बड़ी चीज है।
आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने भक्तजनों और श्रद्धालुओं से आगे कहा कि आपने धर्म के लिए समय निकाला तो है, पर वो भी समय घर के व्यवसाय के समय से निकाला है। ऐसे में घर के व्यवसाय की याद तो आएगी ही। मजबूरी में किए गए धर्म के परिणाम राग के होंगे या द्वेष के। आचार्यों के वचन, वाणी में कहीं ऊंचा-नीचा नहीं होता है। उनके वचन सबके लिए समान होते हैं। अमीर-गरीब सबके प्रति समान-भाव होते हैं। मैं जीव-द्रव्य हूं, मैं अविनाशी हूं, इसे कोई नहीं जानता। आप स्वयं ही जान सकते हो। आप उन वस्तुओं के लिए चिन्ता करते हैं, जो आपकी नहीं है। आप अपनी खोज कीजिए। इतनी स्वाद्वाद वाणी सुनकर भी अगर आपके भीतर वैराग्य के भाव नहीं आए तो समझना कि मटका नीचे से फूटा है, कभी भरेगा नहीं।

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प्रकाश श्रीवास्तव

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