- बच्चों को उनके बचपन से ही आकार देना होगा
- ट्रस्टी व्यवस्थापक सेवक होते है-
प्रतापगढ़(नया मंदिर), 23 जुलाई। प्रख्यात आचार्य जैन संत आचार्य श्री सुंदरसागर जी ने कहा है कि सवेरे सवेरे आप उठें और आपके कानों में णमो कार मंत्र की धुन सुनाई दे तो आप यह मान लें कि आज मेरा दिन अच्छा जाएगा। सुबह आपको जिनेंद्र देव की प्रतिमा का दर्शन हो तो आप ये सोचें कि आज का दिन सौभाग्यशाली है। पर आप यह भी सोचिए कि आपका जिनेंद्र देव से इतना लगाव है कि आपको उठने पर ही ऐसे दृश्य, ऐसे भाव, ऐसी ध्वनि सुनाई देती है। पूरे विश्व में भगवान महावीर स्वामी विश्व वंदनीय हैं और आपको गर्व होना चाहिए कि आप ऐसे वंश के वंशज हैं।
जैन संत ने उदाहरण दिया कि एक चोर था। चोरी करके पेट भरना उसका काम था। उसे चोरी की इतनी लत लग गई थी कि चोरी के पैसे होते हुए भी यदि वह रोज चोरी नहीं करता तो उसका मन व्याकुल हो जाता था। ऐसे ही जिसको जिनेंद्र देव की लगन लगी हो और उसे जिन दर्शन ना मिलें तो उसका भी मन व्याकुल रहता है। उसका सरदार बॉस उसकी चोरी से खुश था। उसके दिमाग में आया कि कहीं ये धर्म की बात ना सुन ले और धर्म की बात में भी जैनधर्म का प्रवचन ना सुन ले वरना ये चोरी से हट जाएगा। उसका सरदार उससे कहता है कि तू जब भी चोरी करने जाए और रास्ते में आसपास जैन मंदिर हो तो अपने दोनों हाथों से कान बंद कर गुजरना। एक दिन बाद ही चोर जैन मंदिर के पास से गुजर रहा था। जैन मंदिर देखकर उसने अपने दोनों हाथों से अपने दोनों कान बंद कर दिए और वहां से गुजरने लगा। तभी उसके पैर में एक कील चुभ गई। अब उसे वेदना होने लगी और वह सोचने लगा कि ये कील निकालने के लिए हाथ कान से हटाने ही पड़ेंगे। उसने सोचा, एकदिन कान में हाथ नही रखूंगा तो क्या हो जाएगा। उसने एक हाथ से पैर पकड़ा और दूसरे हाथ से कील निकालने लगा। उसी समय मुनि के उपदेश चल रहे थे और उसके कान में ना चाहते हुए भी दो शब्द पड़ गए। मुनिश्री कह रहे थे कि देवों की कभी परछाई नहीं पड़ती और देवों की कभी आंखें नहीं टिमटिमाती। वह आगे गया और उसको पुलिस ने उसे पकड़ लिया। पुलिस ने उससे पूछा कि तुम चोरी करके आ रहे हो, तब उसने कहा कि नहीं मैं जैन प्रवचन सुनकर आ रहा हूं। प्रवचन में यह सुना कि देवों की परछाई नहीं पड़ती और देवों की आंखें नहीं टिमटिमाटी। पुलिस ने उसे धर्मात्मा समझकर छोड़ दिया।
सोचो, आप अगर रोज जिनवाणी श्रवण करेंगे तो आप इस राग द्वेष , मोह माया से छूट जाएंगे। जिनवाणी सुनने के बाद भी अगर आप मनमानी करते हैं तो नर्क, निगोद की यात्रा करने के लिए तैयार रहना।
आचार्य सुंदरसागर जी ने कहा, भव्यात्माओ! आपका बच्चा नर्सरी कक्षा में पढ़ता है तो आप स्कूल की जांच करते हैं और स्कूल के सारे नियम मानते हैं। सावधानी बरतते हैं कि मेरे बच्चे का स्कूल सबसे अच्छा हो। बच्चा अगर होमवर्क नहीं करे और अनुपस्थित रहे तो डांट टीचर बच्चे को नहीं लगाता बल्कि उसके माता-पिता को स्कूल में बुलाकर उनको डांटता है। जब आप पढ़ाई के लिए, होमवर्क के लिए, उपस्थिति के लिए सबके कार्य, सब चीज के लिए और डांट खाने को तैयार होते हो ऐसे ही क्या उनको धर्म की ओर मोड़ने के लिए आप तैयार हो? आप सोमवार से शनिवार तक रोज उसके स्कूल चर्या में सहयोगी रहते हो। पर शनिवार रविवार 2 दिन अवकाश के समय क्या आपका फर्ज नहीं बनता कि उसे साधु विराजमान हैं तो उनके प्रवचन में ले जाएं। आकृति तो छोटे से बचपन से ही देनी पड़ेगी। बच्चा जब छोटा है तभी से ही उसको आप धीरे-धीरे धर्म से जोड़ेंगे तो वह बड़ा होकर एक अच्छा आकार लेगा।
आचार्य श्री सुंदरसागर जी ने प्रवचन में कहा कि आप किसी भी संस्था, मंदिर, तीर्थक्षेत्र के ट्रस्टी हैं और आप यह समझते हैं कि आप उस संस्था, मंदिर,तीर्थक्षेत्र के भगवान के ट्रस्टी, कर्ताधर्ता बन गए हैं तो ये आपका अहंकार है। क्या आप त्रिलोकीनाथ के ट्रस्टी मालिक कर्ता धर्ता बन सकते है। सोचिए, जो निर्ग्रन्थ निर्विकार जिनेंद्रदेव हैं उनके ट्रस्टी, मालिक क्या कपड़े पहनने वाले हो सकते हैं? आप समाज के ट्रस्टी हैं तो आप समाज के सेवक हैं। मंदिर के ट्रस्टी हैं तो आप मंदिर के सेवक हैं। ध्यान से सुनना, ये अहंकार आपको सीधा नरक, निगोद की यात्रा कराएगा। हम वीतराग धर्म के अनुयायी हैं, हमारा शासन वीतराग शासन है। उस वीतरागता प्राप्त करने के लिए उसी रास्ते पर चलना पड़ेगा। वीतराग धर्म का अनुसरण करना पड़ेगा। आप सबका मंगल हो।