न्यूज सौजन्य – राजेश जैन दद्दू
इंदौर। एक मां का अपने घर परिवार के सदस्यों पर यह उपकार है कि वह सबके लिए भोजन बनाती और खिलाती है। इसी प्रकार हमारे प्राचीन पूर्वाचार्यों का भी हमारे ऊपर यह उपकार है कि उन्होंने समय निकालकर हमारे लिए जिनवाणी का लेखन करके हमें दिया। आचार्यों के इस उपकार को कभी भूलना मत। हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम अपने सभी उपकारियों के प्रति कृतज्ञ बनें, कृतघ्न नहीं।
यह उद्गार शनिवार को बहुभाषाविद श्रुत संवेगी श्रमण मुनिश्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर, कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे कहा कि शब्द भावों की अभिव्यक्ति है। हमें भाषा और भावों का प्रयोग विवेक से करना चाहिए। किससे क्या, कैसे कहा जा रहा है इस पर ध्यान देना चाहिए। आपकी वाणी और भावों से आपके ज्ञान और अंतरंग के भावों का पता चलता है। आपने कार्य की सिद्धि में निमित्त और उपादान का महत्त्व बताते हुए कहा कि कोई भी कार्य की सिद्धि व सफलता के लिए निमित्त और उपादान दोनों का एक साथ होना चाहिए। किसी एक के ना होने पर कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती।
मीडिया प्रभारी राजेश जैन दद्दू ने बताया कि समारोह में आचार्यश्री विद्यासागर जी के जीवन पर बनी फिल्म अंतर यात्री महापुरुष के डायरेक्टर श्री अनिल कुलचेनिया एवं प्रोड्यूसर श्री उमेश मल्हार का चातुर्मास समिति एवं समोसरण ट्रस्ट के श्री अरुण सेठी, महेश कोटिया, आजाद जैन, हंसमुख गांधी एवं दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद के अध्यक्ष श्री राजकुमार पाटोदी ने माला, शाल, श्रीफल से सम्मान भी किया।