न्यूज सौजन्य-राजेश जैन दद्दू
इंदौर। जीव के दो लक्ष्य होना चाहिए आत्म सुधार और आत्म समीक्षा। जिनवाणी हमारे आत्म सुधार का आधार है और गुरु हमारे आत्म समीक्षा का साधन यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने कंचन बाग स्थित समोसरण मंदिर में व्यक्त किए। मुनिश्री ने आत्म सुधार और आत्म समीक्षा पर बात करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य परमेष्ठी बनना है पर उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आत्म सुधार और आत्म समीक्षा आवश्यक है। आत्म सुधार और आत्म समीक्षा का भाव तभी जागृत होगा जब व्यक्ति की कषाय मंद और तीव्र कषाय का अभाव होगा। जीव के अंतरंग में कषाय की मंदता उसके मित्र के समान है।
कषाय की मंदता के लिए ये करें –
मुनिश्री ने कषाय की मंदता के लिए कहा कि जीव छोटी-छोटी बातों से रुष्ट और शोकाकुल नहीं होना चाहिए।
- किसी की निंदा नहीं करना चाहिए।
- भयभीत नहीं होना चाहिए।
- सत्य पर अडिग रहना।
- अपने परिणामों में भद्रता रखना।
- कार्य में रिजुता
- अपराधियों के प्रति क्षमा भाव रखना व सभी के प्रति प्रीति और पक्षपात रहित समदर्शी व्यवहार करना।
- साधु जनों की सेवा में तत्पर रहना और राग द्वेष व मोह से दूर रहना चाहिए।
इन बातों को अपना कर कषाय को मंद कर सकते है। इसके लिए सभी पुरुषार्थ करें ताकि हम सभी अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें।
मीडिया प्रभारी राजेश जैन दद्दू ने बताया कि सभा की शुरुआत निर्मल गंगवाल, कैलाश वेद, डॉक्टर अरविंद जैन और अरुण सेठी ने मांगलिक क्रियाएं संपन्न कर की। सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।