◆ विद्वानों, समाजसेवियों, श्रेष्ठिजनों ने किया वर्चुअल गुणानुवाद
◆ संयम से ही मनुष्य जीवन की शोभा है : मुनि श्री अपूर्वसागर
@ डॉ. सुनील जैन संचय
ललितपुर । प्रभावना जन कल्याण परिषद (रजि.) के तत्वावधान में वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री अपूर्व सागर जी, मुनि श्री अर्पित सागर जी महाराज का रजत दीक्षा महामहोत्सव पर मुनिद्वय के व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित किया गया जिसमें वक्ताओं ने मुनिद्व्य का गुणानुवाद कर विनयांजलि समर्पित की।
परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परंपरा के पट्टाचार्य परम पूज्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज के आशीर्वाद से आयोजित इस वर्चुअल रजत दीक्षा महामहोत्सव में मुनि श्री प्रज्ञाश्रमण अमितसागर जी महाराज, मुनि श्री अपूर्वसागर जी महाराज, मुनि श्री अर्पित सागर जी महाराज का मंगल सान्निध्य प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में मंगलाचरण संगीतकार एवं पत्रकार दिनेश जैन धगड़ा कोलकाता ने तथा दीप प्रज्वलन ब्रह्मचारिणी बहिन मधु दीदी ने किया।
श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान नक्षत्र :
अध्यक्षता करते हुए डॉ. श्रेयांस कुमार जैन जी बड़ौत, अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय शास्त्री परिषद ने कहा कि युगल मुनि सरल, शांत स्वभावी श्रमण लक्षण से युक्त हैं। द्वय मुनिराजों के गुरु आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने दिगम्बरत्व को प्रतिष्ठापित किया है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ मणीन्द्र जैन दिल्ली राष्ट्रीय अध्यक्ष दिगंबर जैन महासमिति ने मुनिद्व्य को श्रमण संस्कृति का दैदीप्यमान नक्षत्र बताया।
श्रमण संस्कृति को गौरवान्वित किया :
परिषद के निर्देशक ब्रह्मचारी जयकुमार जी निशांत भैया ने कहा कि मुनि द्वय ने अपनी तप, साधना और प्रभावना से श्रमण संस्कृति को गौरवान्वित किया है। प्रबुद्ध चिंतक डॉ चिरंजीलाल बगड़ा कोलकाता ने कहा कि चर्या के प्रति जागरूक रहने वाले संत हैं, उनकी युगल जोड़ी बेमिसाल है। डॉ. नेमिनाथ शास्त्री कुम्बोज बाहुबली ने मुनिद्व्य से कुम्बोज बाहुबली से जुड़े संस्मरण साझा किए।
संसार से वैराग्य तक अद्भुत दोस्ती का 25 वें वर्ष में प्रवेश : परिषद के संयोजक राजेन्द्र महावीर सनावद ने मुनिद्व्य की जन्मभूमि सनावद से लेकर संयम मार्ग तक के संस्मरणों पर प्रकाश डाला। राजू और विजू के नाम से प्रसिद्ध दो युवा सांसारिक जीवन में गहरे दोस्त बने फिर उन्होंने इस नश्वर संसार को त्याग करने का निर्णय किया , और तय किया कि इस अलौकिक वैराग्य पद को दोनों एक साथ धारण करेंगे । दोनों ने पहले यह तय किया था कि जब तक आचार्य वर्धमान सागर जी सनावद की भूमि पर नहीं आएंगे तब तक वह घी और शक्कर का प्रयोग नहीं करेगे , उनका यह दृढ़ निश्चय आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज को सनावद की भूमि पर लेकर आया ।
कार्यक्रम का निर्देशक ब्र. नमन भैया (संघस्थ ) ने बताया कि फरवरी 1998 को राजस्थान की तीर्थ भूमि बिजौलिया में दिगंबर मुनि दीक्षा धारण की सनावद नगर के दो युवा मुनियों ने अपनी दिगंबर दीक्षा के 25 वे वर्ष में प्रवेश किया । दोनों कि यह जोड़ी आज भी साथ ही है और कठिन दिगंबर चर्या को करते हुए अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ रही है और मुझे भी सान्निध्य और मार्गदर्शन मिल रहा है।
रजत दीक्षा महोत्सव के वर्चुअल कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने तथा संयोजन पंडित प्रद्युम्न शास्त्री जयपुर (महामंत्री) , मनीष विद्यार्थी शाहगढ़ (कोषाध्यक्ष) एवं आभार परिषद के अध्यक्ष सुनील शास्त्री सोजना ( टीकमगढ़) माना ।
विनयांजलि समर्पित : इस मौके पर आर्यिका गौरवमती माता जी, प्रतिष्ठाचार्य कुमुद सोनी अजमेर, राजेश पंचोलिया इंदौर, जैन पत्रकार महासंघ के महामंत्री उदयभान जैन जयपुर, श्रीमती स्वाति जैन हैदराबाद, वरिष्ठ पत्रकार एवं परिषद के उपाध्यक्ष राजेश रागी,बक्सवाहा, समन्वयक पंकज जैन छतरपुर, परिषद की संरक्षक श्रीमती सुषमा जैन भिलाई , प्रचारमंत्री अनिल जैन शास्त्री सागर आदि ने द्वय मुनिश्री के जीवन पर संस्मरण सुनाकर मुनिश्री को अपनी विनंयाजलि समर्पित की।
प्रभावशाली जीवन शैली : मुनि श्री अमितसागर जी
मुनि श्री अमितसागर जी महाराज ने अपने वक्तव्य मैं अर्पित सागर ,अपूर्व सागर जी के लौकिक जीवन की मित्रता से लेकर संयम धारण करने तक के संस्मरण सुनाकर मुनि श्री द्वय के साथ रहकर उनकी प्रभावशाली जीवन शैली का चित्रण सुनाया।
मुनिद्व्य का मिला आशीर्वाद :
अंत में नांदणी मठ में विराजमान मुनि श्री अपूर्वसागर जी, मुनि श्री अर्पित सागर जी ने अपने वर्चुअल उदबोधन में परिषद, सभी आयोजनकर्ता वक्ताओं एवं वेबीनार में जुड़े हुए श्रद्धालुओं को अपना मंगल आशीष दिया एवं अपनी जीवन के अनुभव सुनाएं।
जीवन के किसी भी पल वैराग्य उमड़ सकता है : मुनि श्री अपूर्वसागर जी
मुनि श्री अपूर्व सागर जी महाराज ने कहा कि गुरुवर वर्द्धमान सागर जी ने पत्थर को मूर्ति का रूप दिया और पूज्य बना दिया। गुरु के अनन्त उपकार हैं । संयम दीक्षा दिवस पर आप सब भी कुछ न कुछ संयम धारण करें। संयम से ही मनुष्य जीवन की शोभा है। जीवन के किसी भी पल वैराग्य उमड़ सकता है, व्यक्ति संसार में रहकर भी संसार को तज सकता है। मुझे गुरुवर ने जो दिया वह कभी नहीं भुलाया जा सकता।
प्रभावना न कर सको तो कोई बात नहीं लेकिन अप्रभावना न करें : मुनि श्री अर्पित सागर जी
मुनि श्री अर्पित सागर जी ने कहा कि आज हम जो कुछ भी हैं वह गुरुवर आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी की देन है। गुरु ने जो संदेश दिया था कि प्रभावना न कर सको तो कोई बात नहीं लेकिन अप्रभावना न करना उस का पालन कर रहा हूँ और आप सभी भी आचार्यश्री के इस संदेश को अपनाएं। आचार्यश्री का कहना है कि हम अपनी छोड़ेंगे नहीं और दूसरे की बिगाड़ेंगे नहीं। गुरु के उपकार अविस्मरणीय हैं।
बेविनार में मुनिद्व्य की जन्मभूमि सनावद एवं नांदणी मठ जहाँ वर्तमान में मुनिद्व्य विराजमान हैं से भी अनेक श्रद्धालु कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
शामिल प्रमुख गणमान्य : इस दौरान श्री प्रदीप पाटनी लखनऊ, सुरेश जी सबलावत जयपुर, राजेश बगड़ा कोलकाता, मनीष वैद्य जयपुर, सुरेश मरौरा इंदौर,इं. अशोक पालंदी जबलपुर, राकेश सनावद, सपना सनावद, मीना जैन टीकमगढ़, गजेंद्र जैन कुंडलपुर, जिनेन्द्र सिंघई
बड़ामलहरा ,अर्चना जैन बरायठा आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।