पुष्प जी की षष्टम पुण्य स्मृति दिवस 05 जनवरी 2022 पर विशेष :
डॉ सुनील संचय, ललितपुर
साधु , धर्मगुरु , पण्डित , विद्वान् और प्रतिष्ठाचार्य वे विभूतियाँ है जो स्वयं का कल्याण तो करते ही हैं , जन – जन को धर्म की राह दिखाते हैं । परमपूज्य सन्तों , राष्ट्रनेताओं , सामाजिक कर्णधारों और विविध क्षेत्रों में अपने प्रशस्त कृतित्व से सम्पूर्ण वसुन्धरा एवं चिन्तना को महिमा मण्डित करने वालों का प्रतिवन्दन सदैव स्वागतेय होता है । इसी दैदीप्यमान मणिमाला में ‘ सादाजीवन उच्च विचार के सशक्त हस्ताक्षर कालजयी प्रतिष्ठाचार्य माननीय पं . गुलाबचन्द्र जी जैन ‘ पुष्प ‘ एक ऐसा नाम रहा है जो सम्पूर्ण जैन जगत् में अत्यधिक विश्रुत और श्रद्धास्पद है । सम्यक् रत्नत्रय के प्रशस्त आराधक पण्डित ‘ पुष्प ‘ जी को अपने आचार्यत्व में शताधिक पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाएँ और अर्द्धशतक गजरथ महोत्सव शास्त्रोक्त विधि – विधान पूर्वक सुसम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त है । प्रतिष्ठा कार्यों में आगम – सम्मत क्रियाओं को प्रभावना- पूर्वक निष्पन्न कराने वाले पं . पुष्प जी वाणीभूषण रहे हैं । उनकी प्रभविष्णु प्रतिष्ठा शैली और सहज वैदुष्य से अभिभूत समाज ने विविध अवसरों पर उन्हें संहितासूरि वाणीभूषण धर्मरत्न , साहित्यरत्न , विद्वद्रत्न , प्रतिष्ठारत्न , प्रतिष्ठातिलक , प्रतिष्ठादिवाकर प्रभृति अलंकरणों से महिमा मण्डित किया है । मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जनपद के ककरवाहा ग्राम की भूमि को अपने जन्म से प्रख्यात करने वाले उद्भट मनीषी आदरणीय पं . गुलाबचन्द्र जी जैन ‘ पुष्प ‘ आगमोक्त देव शास्त्र – गुरु के अनन्य उपासक , हित मित मधुरभाषी सहृदय विद्वान् थे। पं . जी के व्यक्तित्व में आगमोक्त विधि – विधान की प्रभविष्णुता , प्रभावी वक्तृता , कुशल रचनाधर्मिता और संयमी जीवन यापन का अभूतपूर्व संगम था । यही कारण है कि वे परमपूज्य साधु – सन्तों के भी अधिक निकट रहे । पं . ‘ पुष्प जी आडम्बरविहीन विशुद्धमार्गी प्रतिष्ठाचार्य के साथ – साथ सिद्धान्तमर्मज्ञ , कुशल समाजसेवक , विद्या अभिवर्धक , निष्णात वैद्य , निर्णायक पञ्च , संगीतज्ञ , ज्योतिर्विद और आशुकवि थे। आदरणीय ‘ पुष्प ‘ जी एक ऐसे उद्भट मनीषी थे जो अपनी कलाओं , विद्याओं तथा विशेषज्ञताओं को उदारतापूर्वक सर्वसामान्य को प्रदान करते थे । वे अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रणेता भी हैं । ” पुष्प ” जी आर्ष परम्परा के उन मनीषियों में अग्रगण्य रहे हैं जिन्होंने अपना समग्र जीवन भगवती जिनवाणी माता की आराधना एवं उसके प्रचार – प्रसार में समर्पित कर दिया था । ‘ पुष्प ‘ जी स्वयं तो प्रतिष्ठाचार्य थे ही , उन्हें एक यशस्वी प्रतिष्ठाचार्य का सुपुत्र होने का सौभाग्य और एक उदीयमान प्रतिष्ठाचार्य का पिता होने का भी गौरव प्राप्त है । ‘ पुष्प ‘ जी के पिता पं . मन्नूलाल जी अपने समय के लब्धप्रतिष्ठ प्रतिष्ठाचार्य थे । ‘ पुष्प ‘ जी ने उन्हीं से प्रतिष्ठाचार्य बनने न केवल प्रेरणा प्राप्त की प्रत्युत प्रशिक्षण भी प्राप्त किया । ‘ पुष्प ‘ जी के भरे – पूरे परिवार में उनके चतुर्थ पुत्र ब्र . जय ‘ निशान्त ‘ जी महामंत्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद ,परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज के उपदेश आदेशानुसार अपने पिता से इस प्रतिष्ठाशास्त्र की विद्या की धरोहर को सम्भालने में दत्तावधान हैं । ” पुष्प ‘ जी समाज , धर्म , साहित्य , शिक्षा , संस्कृति , कला , इतिहास एवं पुरातत्त्व के आराधक , सम्बर्द्धक , संरक्षक मनीषी थे। उनकी क्रियाशीलता , बहुज्ञता – विशेषज्ञता और सहजता का अनेकविध लाभ सिद्धक्षेत्र अहार , द्रोणगिरि , नैनागिरि , अतिशय क्षेत्र पपौरा , गिरारगिरि और नवागढ़ आदि को प्राप्त हुआ है ।
श्री पं . मन्नूलाल जी की स्मृति में अपनी जन्मभूमि ककरवाहा में हाईस्कूल की संस्थापना , घुवारा में श्री गणेशप्रसाद वर्णी स्नातक महाविद्यालय की स्थापना हेतु प्रेरणाप्रद उदार दान एवं सागर के भाग्योदय तीर्थ को अपने उल्लेखनीय आर्थिक सहयोग से करना पं . ‘ पुष्प ‘ जी की निजी विशेषता है ।भारतीय मनीषा के मूर्तरूप पं . गुलाब चन्द्र जी ‘ पुष्प ‘ बुन्देलखण्ड के एक ऐसे सपूत थे जिनकी निष्ठा , अध्यवसाय , सार्वजनीन सोच संयमी – अनुशासित जीवनचर्या और रचनाधर्मिता ने उन्हें आवाल – वृद्ध सभी का श्रद्धास्पद बना दिया । साधनहीन छोटे से गाँव ककरवाहा में जन्में ” पुष्प ” जी ने अपने जीवन की तरुणाई के पहले चरण में बहुत से उतार – चढाव देखे , झंझावातों का मुकाबला किया , किन्तु अश्रान्त पथिक की भाँति वे सीढी दर सीढी ऊपर बढ़ते गये और परिणाम यह हुआ कि तरुणाई पार करते ही वे अच्छे प्रतिष्ठाचार्य के रूप में जग जाहिर हुए । पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक उनकी निर्विवाद छवि तथा विशुद्ध आगमानुसारी प्रतिष्ठा पद्धति की गूँज सर्वत्र गूँजने लगी । उन्होंने विधि – विधान और प्रतिष्ठाशास्त्र को अपनी विशेषज्ञता का क्षेत्र बनाया । उनकी क्रियाशीलता के उदाहरण बहुत से पञ्चकल्याणक महोत्सवों , मन्दिर – वेदी – प्रतिष्ठाओं और गजरथ महोत्सवों की निर्विघ्न सम्पन्नता में दिखाई पड़ते हैं और सृजनशीलता उनके द्वारा प्रणीत “ प्रतिष्ठारत्नाकर ‘ आदि ग्रन्थों में निदर्शित होती है । पुष्प ‘ जी द्वारा प्रणीत “ प्रतिष्ठा रत्नाकर ” अपने विषय का परिपूर्ण मानक दर्पण है । लगभग 750 पृष्ठों के इस महाग्रन्थ में प्रतिष्ठा सम्बन्धी सभी विधि – विधानों का जो सांगोपांग , शास्त्रसम्मत विश्लेषण पं . जी ने किया है वह अद्वितीय है । इस महाग्रन्थ से दुरूह प्रतिष्ठाप्रविधियाँ प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न कराने के अभिलाषी विद्वानों के अतिरिक्त सामान्य जनों को भी हस्तामलकवत् सहज सुबोध हो उठी । इसके अतिरिक्त पं . जी की अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं : प्रतिष्ठा – दर्पण , अर्चना गीत , याग – मण्डल विधान , व्रतोद्यापन संग्रह आदि।
पुष्प जी के व्यक्तित्व की चमक बढ़ाने और उनकी कीर्ति प्रसारित करने में उनकी अपनी साधना तो कारण रही ही है , परन्तु एक और बड़ा सशक्त कारण यह है कि वे निष्ठावान प्रतिष्ठाचार्यों की अपनी ही तीन पीढ़ियों की माला के मध्य में एक आभावान मणि की तरह सुशोभित थे। उनके पूज्य पिता पण्डित मन्नूलाल जी अपने समय के माने हुए प्रतिष्ठाचार्य थे और अपनी विनम्रता तथा निःस्पृहता के लिये विशेष रूप से जाने जाते थे । पुष्प जी स्वयं अपनी अनेक विशेषताओं के साथ जाने जाते थेऔर उनके होनहार सुपुत्र आदरणीय ब्र. जय कुमार जी ‘ निशान्त ‘ भैया भी आजन्म ब्रह्मचर्य का संकल्प लिये , अपने पिता के समान अनुशासन में प्रतिष्ठा कार्यों के साथ प्रतिबद्ध , एक निष्णात प्रतिष्ठाचार्य के रूप में , सारे देश में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं । प्रतिष्ठा के क्षेत्र में ऐसा तीन पीढ़ियों का अक्षुण्ण योगदान किसी भी प्रतिष्ठाचार्य के लिये बड़ा दुर्लभ संयोग है । आदरणीय पुष्पजी सचमुच भाग्यशाली थे कि यह उत्तम संयोग उनके अवदान का प्रभा – मण्डल बन कर इतिहास में उनकी कीर्ति को प्रसारित कर रहा है।
आदरणीय पुष्पजी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सराकोद्धरक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में अतिशय क्षेत्र बड़ागांव खेकड़ा जिला बागपत में ‘पुष्पांजलि’ अभिनंदन ग्रंथ समर्पण करके प्रतिष्ठा पितामह की उपाधि से अलंकृत किया गया था ।
सुप्रसिद्ध गीतकार रवींद्र जैन मुंबई ने लिखा था –
रत्नाकर के रत्न प्रतिष्ठा के वे अमित तिलक हैं।
पुष्पांजलि के द्वारा इनके वन्दन-अभिनंदन हैं।।
पुष्प जी के समग्र समर्पण से ही आज ललितपुर जनपद में स्थित प्रागैतिहासिक दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र नवागढ़ जन-जन की आस्था का केंद्र बन रहा है। उनके बाद आदरणीय ब्र. जयकुमार जी निशांत भैया विरासत सहेज रहे हैं। नवागढ़ क्षेत्र को शून्य से शिखर तक विकास के आयाम स्थापित करने में आपका योगदान जैन संस्कृति की इतिहास में सदैव अमर रहेगा। पिछले वर्ष से यहाँ गुरुकुल का संचालन भी शुरू हो गया है जो एक नया आयाम स्थापित कर रहा है। आदरणीय जयनिशांत भैया जी ने पुष्प जी के सपने को साकार करने का संकल्प किया है। आप निरंतर नवागढ़ क्षेत्र के पुरातत्व के अन्वेषण एवं विकास के लिए दृढ़ता एवं समर्पण के साथ संलग्न है। इसी का सुफल है कि आज नवागढ़ क्षेत्र प्राचीनतम पुरातात्विक धरोहर के लिए विश्व विख्यात हो रहा है ।
परम आदरणीय गुलाब चंद्र पुष्प का जीवन आदर्श रहा है , आपने अधिकांश समय स्वाध्याय एवं अनुष्ठान में व्यतीत किया था। उन्होंने ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से दो प्रतिमा के व्रत कोनी अतिशय क्षेत्र में ग्रहण करके व्रती जीवन का शुभारंभ किया था। धर्म आचरण करते हुए अपने परिवार से उदासीन होकर इंदौर पंचबालयती आश्रम को साधना स्थल बनाया। उनका अंतिम संस्कार नवागढ़ तीर्थक्षेत्र पर हुआ था।
मेरा सौभाग्य रहा कि परम श्रद्धेय गुलाब चन्द्र जी पुष्प का मार्गदर्शन मुझे प्राप्त हुआ।
उनकी षष्ठम पुण्य तिथि पर उन्हें शत शत नमन, श्रद्धांजलि।