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युवाओं को गांव में लौटाया जाएः एक गौ माता से 30 एकड़ भूमि में खेती हो सकती है-पद्मश्री सुभाष पालेकर


एक गौ माता से 30 एकड़ भूमि में कृषि का भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है। आज का युवा गांव छोड़कर भाग रहा है। हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा है गांव में बहुत बड़े और अच्छे आधुनिक मकान भी बने हैं लेकिन युवा गांव में नहीं है उन्हें वापस गांव में लौटना होगा, अन्यथा देश की स्थिति बहुत भयावह हो जाएगी। उक्त विचार भारत सरकार द्वारा 2016 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित सुभाष पालेकर ने कहीं। पढ़िए राजेंद्र महावीर से सनावद की यह पूरी खबर…


सनावद। निमाड़ क्षेत्र में चिकनी काली उपजाऊ मिट्टी है, निमाड़ी गोवंश खेती के लिए बहुत उपयोगी है। एक गौ माता से 30 एकड़ भूमि में कृषि का भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है। आज का युवा गांव छोड़कर भाग रहा है। हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा है गांव में बहुत बड़े और अच्छे आधुनिक मकान भी बने हैं लेकिन युवा गांव में नहीं है उन्हें वापस गांव में लौटना होगा, अन्यथा देश की स्थिति बहुत भयावह हो जाएगी। उक्त विचार भारत सरकार द्वारा 2016 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित सुभाष पालेकर ने बासवा में समाजसेवी शिक्षक राजेंद्र महावीर के साथ हुई चर्चा में व्यक्त किए।

युवाओं को गांव में लौटाया जाए 

इस चर्चा में पद्मश्री सुभाष पालेकरजी ने अनेक बिंदुओं को छूते हुए प्रश्नों का निराकरण भी किया, उन्होंने कहा की ग्लोबल वार्मिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यह दो ऐसे भस्मासुर हैं जो पूरी दुनिया को नष्ट कर सकते हैं, संपूर्ण विश्व का इकोसिस्टम समाप्त हो रहा है इसका एक ही उपाय है कि युवाओं को गांव में लौटाया जाए और सुभाष पालेकर कृषि मॉडल से शून्य बजट प्राकृतिक खेती की जाए।

रासायनिक और जैविक दोनों कृषि से बढ़ती है ग्लोबल वार्मिंग

पद्मश्री सुभाष पालेकर ने कहा कि प्राकृतिक खेती नाम की कोई व्यवस्था नहीं है रासायनिक और जैविक कृषि दोनों ही घातक है वास्तव में किसानों को खेती के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है इसलिए वे आधुनिक भ्रमजाल में उलझ कर खेती की जमीन और खुद का स्वास्थ्य खराब कर रहा है। किसानों को रासायनिक, जैविक नहीं सुभाष पालेकर कृषि मॉडल पर कार्य करना चाहिए ।

पालेकर कृषि कैंसर डायबिटीज से मुक्त कराकर डेढ़ गुना ज्यादा दाम दिलाएगी

पद्मश्री सुभाष पालेकर ने कहा कि मेरे द्वारा जो मॉडल विकसित किया गया है वह जीव, जमीन, पानी, पर्यावरण विनाश को रोकता है और भूमि सरंक्षण संवर्धन करता है। हम अगली पीढ़ी को ऐसी भूमि बनाकर देते हैं, जिसमें कोई खाद नहीं डालना है इससे उत्पादन घटेगा नहीं, लागत बढ़ेगी नहीं और उपज का दाम डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगा। हमारे मॉडल से जो कृषि उपज होगी वह कैंसर और डायबिटीज से मुक्त होगी। किसान एक देसी गाय के गोबर से और गोमूत्र से 30 एकड़ खेती में उत्पादन ले सकता है।

प्रधानमंत्री की इच्छा है सुभाष पालेकर कृषि से किसानों आय दोगुना

सन 2016 में भारत सरकार के नागरिक सम्मान पद्मश्री सम्मानित सुभाष पालेकर कृषि विशेषज्ञ हैं। जिन्होंने शून्य बजट प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाकर कई किताबें भी लिखी है। अभी तक 40 लाख से अधिक किसानों को अपनी शिक्षा व प्राकृतिक खेती से उन्होंने लाभान्वित किया हैं। पद्मश्री पालेकर ने पुआल का उपयोग गाय के गोबर, गो मूत्र के मिश्रण का छिड़काव करने व पांच परतों में फसल उगाने का शिविर सनावद में लगाया। जिसमें 350 कृषको ने सुभाष पालेकर कृषि करने का प्रशिक्षण लिया। श्री पालेकर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदीजी चाहते हैं कि किसानों की आय दोगुना हो। इस हेतु शून्य बजट खेती को जन आंदोलन बनाना होगा। जिससे उनके स्वप्न को ग्राम ग्राम तक पहुंचाया जा सके।

मॉडल बनाने के लिए प्रेरित किया

पद्मश्री सुभाष पालेकर से प्रभावित सेवानिवृत प्रोफेसर मणि शंकर डोंगरे, बासवा निवासी आईआईटी कानपुर के छात्र हरिओम बिरला ने कहा कि वह अपने खेतों में पालेकर कृषि मॉडल बनाकर कृषि करेंगे। श्री पालेकर ने बासवा के बीच स्थित नंदराम बिरला के खेत का अवलोकन कर मॉडल बनाने के लिए प्रेरित किया।

गांव में मॉडल खड़ा होना चाहिए

पद्मश्री सुभाष पालेकरजी का स्वागत राजेंद्र जैन महावीर, दिनेश राठौर, बालकराम रावत, गणेश बिरला, अनोखीलाल सेजगाया, राकेश बिरला, अंकित रेवापाटी, मानकचंद रेवापाटी, दंदू मलगाया आदि ने किया। उल्लेखनीय पद्मश्री पालेकर संपूर्ण देश में कृषि मॉडल का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं उनका मानना है कि नई पीढ़ी बदलाव लाएगी और खेतों में मॉडल बनेगा तो उसे देखकर किसान समझ सकेंगे, इस हेतु हर गांव में मॉडल खड़ा होना चाहिए।

कृषि करने के तरीकों में बदलाव लायें 

किसान मित्रों को यह समझना चाहिए कि कोई कानून नहीं है कि वह खेतों में रासायनिक खाद डालें, किसान भ्रम में है और वह भ्रमित होकर कृषि में वे सब प्रयोग कर लेते है, जो उसे नहीं करना चाहिए। किसान को अपना निर्णय स्वयं करना होगा। हमें प्रकृति को जीवित रखना है और ग्लोबल वार्मिंग से बचाना है तो हमें कृषि करने के तरीकों में भी बदलाव लाना पड़ेगा।

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